Book Title: Shrutsagar 2015 05 06 Volume 01 12 13
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 82
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगामी प्रकाशन प्राचीन हस्तप्रतों में निबद्ध भारतीय श्रुतसंपदा के अध्ययन, मनन, संपादन एवं प्रकाशन हेतु पुरालिपियों का बोध अति आवश्यक है । इन लिपियों के माध्यम से ही भारतीय पुरा इतिहास एवं पुरासंपदा को अनन्तकाल से सुरक्षित रखा जा सका है । आज भारतीय प्राचीन लिपियों को जानने वाले विद्वान बहुत कम बचे हैं । इन लिपियों को सीखने वालों की संख्या भी बहुत कम होती जा रही है । यदि इस दिशा में सार्थक प्रयास नहीं किये गये तो भविष्य में ये लिपियाँ भी लुप्त हो जायेंगी जो देश एवं समाज के लिए भारी छती होगी। भारतीय प्राचीन लिपियों के बोधार्थ ब्राह्मी, ग्रंथ व देवनागरी लिपियों का एक साथ संकलन कर 'भारतीय प्राचीन लिपि बोधिनी के माध्यम से प्रकाशित किया जा रहा है। इस पुस्तक में ब्राह्मी, ग्रंथ व प्राचीन देवनागरी लिपियों की वर्णमाला एवं उद्भव और विकास को प्रकाशित करने का प्रयास किया है जो इस विषय में रुचि रखने वालों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। * पुस्तक नामः भारतीय प्राचीन लिपि बोधिनी * पुस्तक प्रकाशकः श्रीमहावीर जैन आराधना केन्द्र-कोबा * लेखन-संपादन : डॉ. उत्तमसिंह मुखपृष्ठ परिचय प्रस्तुत अंकना मुखपृष्ठ पर प्रकाशित गुरु प्रतिमा पंदरमी सदीमां थयेला धर्मघोषगच्छीय आचार्य श्रीरविप्रभसूरिजीना संतानीय आचार्य श्रीसोमप्रभसूरिजीना पट्टधर आचार्य श्रीपूर्णचंद्रसूरिजीनी छे. मस्तक उपर जिनेश्वर भगवंतने धारण करेल छे, तो मस्तकनी पाछळना भागे रजोहरण द्रश्यमान थाय छे. परिकरमा आजुबाजुमां महात्माओ बिराजमान थयेला जणाय छे. डाबा खभा उपर एक लघु वस्त्र तेमज जमणा हाथमां नवकारवाळीन स्थापन करेल छे. प्रतिमालेख: संवत १४४९ वर्षे ज्येष्ठ शुदि १० बुधे श्रीधर्मघोषगच्छे श्रीरविप्रभसूरिसंताने श्री सोमप्रभसूरिपट्टे श्रीपूर्णचंद्रसूरि मूर्ति देवमूर्तेन कारापिता ।। For Private and Personal Use Only

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