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श्रुतसागर
मे-जून-२०१५ - सरलार्थ-हे माता! तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, प्रतिवासुदेव, बलदेव, शिवादि मनुष्य, इन्द्र, ब्रह्मा, बृहस्पति, शुक्र, बुधादि देवता के मुख में वास करने पर इन देवमनुष्यों के द्वारा कार्य गतिशील होता है. अतः पंचतत्त्वों की स्वामिनी तुम पंचतत्त्वेश्वरी हो। हे देवी०... ॥४॥
के के मूर्खजना महाजडधिया, ये कालिदासादयस्ते सर्वस्य ददावुदारधीषणा-मुद्दामविद्वत्कृताः । त्वं गीप्तिमति च षोडशसुरी, विद्यामहत्वेश्वरी। हे देवी! सुमुखे भवन्तु सततं, सन्तुष्ट मातेश्वरी ॥५॥ध्रु.॥
सरलार्थ-हे माता! कालिदासादिक कितने ही मूर्ख व महाजडबुद्धिवाले मनुष्यों को तुमने उदार मन से बुद्धि प्रदानकर स्वतन्त्र प्रतिभासम्पन्न विद्वान बनाया। तुम वाणी, ज्ञप्ति (ज्ञान-बुद्धि), मति, षोडश महान विद्याओं की ईश्वरी विद्यामहत्वेश्वरी हो। हे देवी०... || ५॥
लघ्वाभूधरशङ्करानभतयाचार्या सुबोधादयः। हेमाद्यावृद्धिवादिसूरिप्रभृति, श्रीसिद्धसेनस्तथा ।। एतदन्यप्रसादतस्त्वदभवत्, सभ्यत्वदेवेश्वरी। हे देवी! सुमुखे भवन्तु सततं, सन्तुष्ट मातेश्वरी ॥६॥ध्रु.॥
सरलार्थ-हे माता! तुम्हारी अनन्य कृपा से लघ्वाचार्य, भूधर, शंकराचार्य, अनुभूतिस्वरूपाचार्य, सुबोधादि तथा आचार्य हेमचंद्रसूरि (कलिकालसर्वज्ञ), वृद्धवादिसूरि, श्रीसिद्धसेनाचार्य प्रभृति लोग सिद्धसारस्वत सभा के सभ्य बने । अर्थात् हे विद्यामृतदायिनी सरस्वती तुम्हारी कृपादृष्टि जिसे प्राप्त हो जाती है वह साधारण से असाधारण प्रतिभासम्पन्न विद्वद्वरेण्य हो जाता है। तुम ऐसी देवेश्वरी हो। हे देवी०... ॥६॥
त्वं श्रीधीधृतिकीर्त्तिकान्तिमहिमा, त्वं शेमुखी(षी) व्रीडया सिद्ध्यष्टाष्टधिया च नन्दनिधय-स्त्वं लब्धिसमृद्धयः॥ सर्वैस्त्वत्कृपया प्रसाद लभते, इष्टार्थ इष्टेश्वरी। हे देवी! सुमुखे भवन्तु सततं, सन्तुष्ट मातेश्वरी ॥७॥ ध्रु.॥
सरलार्थ-हे माता! तुम लक्ष्मी, बुद्धि, धृति, कीर्ति, कान्ति आदि महिमाओं से युक्त हो, तुम लज्जायुक्त बुद्धि हो (लज्जापूर्ण बुद्धिवाली, लज्जाशीला), तुम
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