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श्रुतसागर
मे-जून-२०१५ प्रत परिचय:
प्रस्तुत कृति का संपादन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भांडागार में उपलब्ध दो प्रतों के आधार से हुआ है। प्रत-१ का प्रतक्रमांक-४४७०७ है। पत्र संख्या-१ है. प्रत पदार्थ प्रकार कागज पर संपूर्णरूप से आलेखित मिलती है। प्रत की लम्बाई २५ से.मी. तथा चौड़ाई-११ से.मी. है। पत्र में १० से १२ पंक्तियाँ हैं. प्रत्येक पंक्ति में अंदाजन अक्षर-४२ के आस-पास है। यत्र-तत्र पाठ संशोधित है।
कहीं-कहीं स्याही फैली हुई है। प्रत की भौतिक दशा अच्छी है। प्रतिलेखन पुष्पिका संबंधी कोई उल्लेख नहीं है। प्रत की लिखावट से लेखन संवत् का अनुमान वि. १८वीं उत्तरार्द्ध से १९वीं पूर्वार्द्ध ठहरता है।
प्रारंभ में ऐं नमः ॥ लिखकर प्रतिलेखक ने मंगलाचरण किया है तथा अन्त में इति “श्रीशारदास्तोत्रम्” लिखकर लेखन कार्य पूर्ण किया है, अक्षर साफ व सुवाच्य हैं। इस प्रत की सूचना स्थानीय हस्तप्रत भंडार के सूचिपत्र के ११वें भाग में छप चुकी है।
प्रत-२ का प्रत क्रमांक- ७५६२७ है। पत्र संख्या-१ है। प्रत पदार्थ प्रकार कागज पर संपूर्ण रूप से लिखी हुई मिलती है। प्रत की लम्बाई २७ से.मी. तथा चौड़ाई-१३ से.मी. है। __ पत्र में श्ओर१५ दूसरी ओर ११ पंक्तियाँ हैं। प्रत्येक पंक्ति में अंदाजन अक्षर४० के आस-पास हैं। शेष सूचनाएँ प्रत १ के समान हैं। लिखावट से प्रत वि. सं. २० की लगती है। इस प्रत की सूचना स्थानीय हस्तप्रत भंडार के सूचिपन के १८वें भाग में छप चुकी है। ___अंत में कृति सम्पादन या अनुवाद के अन्तर्गत किसी भी प्रकार की क्षति रह गयी हो तो नीरक्षीरविवेकी सुधीजन क्षमा करते हुए ज्ञात कराने की कृपा करेंगे जिससे कि यह कृति अधिकतम उपयोगी सिद्ध हो सके । अलमिति विस्तरेण, सुज्ञेषु किं बहुना...
- श्रीशारदास्तोत्रम् श्रीमाता श्रुतदेवता भगवती, वाग्देव्यपि भारती। धाताधीशुचिबुद्धिदा सरस्वती, विश्वोपकारी महत् ॥ विश्वाधार विशुद्धविश्वमहिमा, विश्वाम्ब विश्वेश्वरी। हे देवी! सुमुखे भवन्तु सततं, सन्तुष्ट मातेश्वरी ॥१॥ ध्रुवपद।।
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