Book Title: Shrutsagar 2015 05 06 Volume 01 12 13
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 61
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 59 SHRUTSAGAR MAY-JUNE-2015 है। आशय है कि इस तरह भक्तों को उसकी भक्ति के अनुसार ज्ञान प्रदान करने से माँ तुम ज्ञानेश्वरी हो. हे देवी०... ॥१३॥ त्वं वृन्दारकधेनुनि रद्रुम-स्त्वं देवकुम्भोपमम्। त्वं कम्बूत्रिदशास्तथासुरलता-स्त्वं शब्दक्षीरोदधि ।। सर्वाभीष्टफलार्थदा सुमनसः, रत्नत्वमिन्द्रेश्वरी। हे देवी! सुमुखे भवन्तु सततं, सन्तुष्ट मातेश्वरी ॥१४॥ ध्रु.॥ सरलार्थ-हे माता! तुम स्वर्ग की कामधेनु एवं कल्पवृक्ष हो, तुम देवों का अनुपम अमृतकुम्भ हो, तुम देवों के लिये विजयघोषकारक शङ्ख तथा मनोकामना पूर्ण करनेवाली कल्पलता हो, हे माँ! तुम शब्दों का क्षीरसागर हो, तुम सच्चे मन से सभी प्रकार के अभीष्ट फल को देनेवाली चिन्तामणि रत्न हो. इस प्रकार मनोवाञ्छित फलदायिनी, विपुल वैभव की स्वामिनी तुम इन्द्रेश्वरी हो। हे देवी०... ॥१४॥ प्रशस्तिश्लोकस्तवमिदं तव एव कृतं मया, जननी मे विहितं शिशुलीलया। विजयरत्नभुजिष्यसुरोऽवदत्, भवतु मां त्वर पातु सुदृष्टितः।।१५।। द्रुतवि.।। ॥ भवतु मां सुप्रसन्न सुदृष्टितः ॥ (अधिक पाठ) ॥इति श्रीशारदास्तोत्रं सम्पूर्णम्।। सरलार्थ-हे माता! बालक्रीडा के द्वारा यह स्तव मैंने आपके लिये ही किया। विजयरत्न(सूरि) नामक आपका दास निवेदन करता है कि अपनी कृपापूर्ण सुदृष्टि से शीघ्र मेरी रक्षा करो। ॥अपनी कृपामयी दृष्टि से मुझ पर सुप्रसन्न हो ॥ (अधिक पाठ है।) स्खाल्यं भवतु निर्माल्य, ग्राह्य तु पयसाम्बुवत् । सरलार्थः सदा भातु, भाव्यं श्रीशारदास्तवम् ॥ ॥ श्रीशारदास्तोत्र सरलार्थ सम्पूर्ण हुआ। For Private and Personal Use Only

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