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SHRUTSAGAR
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MAY-JUNE-2015
अष्टबुद्धियुक्त अष्टसिद्धि व नवनिधि हो, तुम २८ लब्धि व समृद्धिस्वरूपा हो । सभी तुम्हारी कृपा से ही सब कुछ पाते हैं. अर्थात् बुद्धि -विद्या, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि प्राप्त करते हैं। इस तरह तुम इष्टार्थ प्रदान (मनोकामना पूर्ण) करनेवाली इष्टेश्वरी हो । हे देवी०... ॥७॥
त्वं मरुतोद्धतजाड्यतापटलतं, हर्तुं हृदि व्योमतस्त्वं मित्रोभिनवः जडत्वतमसा, हर्त्ता हृदिमन्दिरात् ।। मूर्खत्वावकरोघप्लावनकरी, त्वं नद्य गङ्गेश्वरी ।
हे देवी! सुमुखे भवन्तु सततं, सन्तुष्ट मातेश्वरी ॥८॥ ध्रु.॥
सरलार्थ हे माता! तुम हृदयाकाश में जमे हुए उद्धत जाड्यपटल (जडता, बुद्धिमन्दता) को उड़ानेवाली (उखाड़ फेंकनेवाली) वायु हो । हे माँ! तुम हृदयमन्दिर के जड़ता रूपी अन्धकार को दूर करनेवाली तिमिरनाशक अभिनव सूर्य हो । मूर्खता मिटानेवाली तथा पापों का प्रक्षालन (पखाड़नेवाली) करनेवाली तुम नदी गङ्गेश्वरी हो । हे देवी ०... ॥ ८ ॥
दुर्बुद्धि (र्ज) जडता च नागविष तत्, त्वं हर्तुं सौपर्णवत्। नाविद्या विपनस्य ज्वालन शिखिवत् त्वं च शुभ्रानने ।।
मूर्च्छा हर्तुं शठत्व पीयूषसमा, त्वं शुभ्रध्यानेश्वरी । हे देवी! सुमुखे भवन्तु सततं सन्तुष्ट मातेश्वरी ॥९॥ ध्रु ॥
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सरलार्थ-हे माता शुभ्रानने ! ( गौरवर्ण मुखवाली ) ! दुर्बुद्धि एवं जड़तारूपी नागविष उसे हरण करने हेतु (नष्ट करने हेतु ) गारुडिक (गरुडशास्त्रज्ञ, विषवैद्य) के समान, अविद्यारूपी वन को जलाने में अग्नि के समान हो, मूर्च्छाहरण करने के लिये अमृतसमान औषध हो, हे माता! तुम शुक्लध्यान धरनेवाली शुभ्रध्यानेश्वरी हो । हे देवी०... ॥ ९ ॥
मालैकं करयोश्चमौक्तिकवरो, जप्तुं पिता (र) महवयम्। वीणाकच्छपी धारितापरकरै-श्चैकं धृतं पुस्तिकाम् ॥ हस्तैकं वरदाश्चतुष्कररिव, बालास्वरूपेश्वरी। हे देवी! सुमुखे भवन्तु सततं सन्तुष्ट मातेश्वरी ॥१०॥ ध्रु. ॥
सरलार्थ हे माता! तुम एक हाथ में मोती की माला लिये ब्रह्मध्यान में निमग्न हो, एक हाथ में कच्छपी वीणा (वीणा का एक प्रकार ) धारण की हुई हो, दूसरे हाथ में पुस्तक है तथा एक हाथ वरदान देनेवाली वरदमुद्रा में है । इस प्रकार
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