Book Title: Shrutsagar 2015 05 06 Volume 01 12 13
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 62
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तप्रतों में प्रयुक्त चिह्नों वसंयुक्ताक्षरों का संपादकीय विवेचन डॉ. उत्तमसिंह श्रुतज्ञान को आधार बनाकर; हमारे आचार्यों, मनीषियों, साधु-साध्वियों एवं श्रुतसेवी विद्वानों ने धार्मिक-प्रभावना के साथ-साथ ज्ञानज्योत को प्रज्ज्वलित रखने हेतु सबसे बडा और महत्त्वपूर्ण कार्य साहित्यनिर्माण का किया। उन्होंने सहस्रों ग्रन्थ ताडपत्र, भोजपत्र, कपडे एवं कागजों पर लिखकर भारतीय ज्ञानकोष को सुरक्षित रखा है। वर्तमान में उपलब्ध ऐतिहासिक तथ्यों एवं अन्य विवरणों से यह स्पष्ट है कि हमारे आचार्यों, साधु-साध्वीजी भगवन्तों एवं श्रावकों के द्वारा रचित ग्रन्थों की संख्या प्रचुर मात्रा में है। जिनमें से अनेक ग्रन्थ उपलब्ध हैं तो अनेक ग्रन्थ अनुपलब्ध हैं। कुछ ग्रन्थों के तो सिर्फ उद्धरण ही मिलते हैं लेकिन आज वे ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हैं। या फिर कहीं हैं तो अन्धकार में डूबे हुए हैं, उनका कोई पञ्जियन नहीं है और कैसी स्थिति में होंगे यह हम अनुमान भी नहीं लगा सकते! नई दिल्ली स्थित इन्दिरा गाँधी राष्टीय कलाकेन्द्र के प्राङ्गण में सञ्चालित राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन द्वारा प्राचीन हस्तप्रतों के सर्वे का काम पूरे देश में चलाया जा रहा है। सौभाग्य से मुझे भी इस सर्वे-कार्य में जुडने का अवसर प्राप्त हुआ। इस सर्वे के दौरान हमें कई स्थानों पर अनेकों महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ मिले हैं। इनमें से कुछ ग्रन्थों की दशा श्रेष्ठ है तो कुछ उचित रख-रखाव के अभाव में अति जीर्ण हो गये हैं। कई ग्रन्थ तो ऐसे प्राप्त हुए हैं जिन्हें दीमक या सिल्वरफिश् आदि कीडों के द्वारा पूर्णत: नष्ट कर दिया गया है। अनेकों ग्रन्थ ऐसे भी मिल रहे हैं जिनकी स्याही बरसात या धूप के कारण फीकी पड गई है, कागज भी पीला पड़ गया है और अब उन्हें पढपाना बहुत मुश्किल है। कुछ ताडपत्र ऐसे भी मिले हैं जिनपर टाँकणी द्वारा टाँक कर (खोदकर) लिखा हुआ तो मिलता है लेकिन उन अक्षरों में स्याही नहीं भरी है। हो सकता है कि लहिया अथवा ग्रन्थ लिखवाने वाले व्यक्ति के पास स्याही का अभाव रहा हो, या कोई अन्य कारण भी हो सकता है। क्योंकि उस समय एक ग्रन्थ तैयार करने हेतु स्याही, कागज, ताडपत्र, कलम आदि लेखन-सामग्री का इंतजाम करने में ही लंबा समय गुजर जाता था। अर्थात् यह सब व्यवस्था करना इतना आसान नहीं था। १. देखें पृष्ठ संख्या ६९-७०. For Private and Personal Use Only

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