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श्रीशारदास्तोत्रम्
संजयकुमार झा संस्कृतभाषा में निबद्ध १५ श्लोकात्मक यह श्रीशारदास्तोत्र है. श्लोक-१ से १४ शार्दूलविक्रीडित छन्द में कर्ता ने खूब सुन्दर ढंग से भाववाही स्तुति की है। श्लोक-१५ द्रतविलम्बित छन्दोबद्ध प्रशस्तिश्लोक है। स्थानीय दो प्रतों के सहयोग से सम्पादन किया गया है। दोनों प्रतों में सामान्य पाठान्तर है। प्रायः पाठों में समानता दृष्टिगोचर होती है। कृति परिचय ___स्तोत्रकार ने तटस्थभाव से भेदभावरहित सर्वग्राही स्तुति की रचना की है।
जैन-जैनेतर सबके लिये एकनिष्ठभाव से यह स्तोत्र उपयोगी है। परमब्रह्मध्यानमग्ना माँ सरस्वती की महिमा भी कुछ ऐसी है कि, सांसारिकसुखदायिनी की अपेक्षा विशेष करके अध्यात्म, सद्ज्ञान, शब्दब्रह्मचिन्तन, कैवल्यप्राप्ति आदि अध्यात्म व वैराग्यमय जीवनयापन एवं शाश्वत कैवल्यसुख प्राप्ति की दिशा में सन्मार्ग प्रशस्तकारिणी है।
देव, मनुष्य, यक्षादि सभी इनकी कृपा से अपने-अपने कार्यों में योग्य रूप से प्रवृत्त होते हैं। शंकराचार्य विरचित अन्नपूर्णा स्तोत्र की प्रतीति करानेवाला यह स्तोल स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। देखें
नित्यानंदकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी-पाद-१, भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी-पाद-४. प्रस्तुत कृति को देखें
श्रीमाता श्रुतदेवता भगवती वाग्देव्यपि भारती-पाद-१,
हे देवी सुमुखे भवन्तु सततं सन्तुष्ट मातेश्वरी-पाद-४.. दोनों के छंद शार्दूलविक्रीडित हैं। दोनों के चतुर्थपाद ध्रुवपद हैं। निस्संदेह स्तोत्रप्रणेता ने श्रुतदेवता की भक्ति में ओत-प्रोत होकर सरस्वतीमहिमापरक, विभिन्न अलग-अलग नाम-विशेषणादि के द्वारा सरस्वतीमाता का यशोगान करते हुए माता को प्रसन्न करने हेतु सफल प्रयास किया है।
__ श्लोक १ से १४ तक के तृतीय पाद के अन्त में विभिन्न विशेषणयुक्त “ईश्वरी" शब्द सहज ही पाया गया है। जो श्रुतदेवी शारदा की महिमा में चार चाँद सा प्रतीत
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