Book Title: Shrutsagar 2015 05 06 Volume 01 12 13
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
50
श्रुतसागर
मे-जून-२०१५ भावसृष्टिना बोधक अनुभवो पण कविए झीणी नजरथी जोया छे अने आपणी समक्ष मूक्या छे. एमां विरहनी मूक वेदनाथी मांडीने एनी काळ झाळ पीडा सुधीनी स्थितिने व्यक्त करे एवा अनुभवो छे.
ए गोरी क्षणमां आंगणे तो क्षणमां ओरडे ऊभी रहे छे, क्यारेक रड्या करे छे, एनी आंख उजागरे राती छे, चंदन, चंद्र के वींझणो एना तापने बुझावी शकता नथी, शय्या तो जाणे अग्नि, कांटा, कौचां के लोढानी बनेली होय, चीर जाणे शरीरने चीरी रह्या होय, सांकळां जाणे जंजीर समान होय एवू लागे छे, रात्रे यौवनमंजरी महेकी ऊठे छे, पण ए तो निसासाओथी पोतानी कायाने बाळी रही छे. (यौवनमंजरीनुं महेकवू अने निसासाथी कायाने बाळवी-केवी क्रूर विधिवक्रता!), शरीर पांडुर अने पिंजर जेवु बनी गयु छे, भूख, तरस, निद्रा, देहनी सान-भान बधुं प्रियतमने अी दीधु छे!
प्रियतम मळवानो न ज होय तो आ बधा सहनतपननो शो अर्थ? पण ना, कोशा कहे छे. डिल उपर दुःख वहोरी लईने, वहाला, हुं तने मळीश'
आ निश्चय अने एनी पाछळ रहेली आंतरप्रतीति अंते फळे छे अने भले मुनिवेशे पण, स्थूलिभद्र कोशाने आवासे आवे छे. एने जोईने कोशाना हृदयकमलनो विकास थाय छे अने वनराजि जेम मधुमासने, तेम कोशा पोताना कंथने पामीने अधिक उल्लासवंत बने छे. साचुं शुद्ध कवित्व अन्य प्रयोजनोने पोतानी पासेथी केवा हडसेली मूके छे एर्नु आ काव्य एक सुंदर उदाहरण छे.
जयवंतसूरि जेवा साचा कविने शोधीने बहार लाववानो समय हवे पाकी गयो छे. एमना स्थूलिभद्र-कोशा प्रेमविलास फाग अने जिनपद्मसूरिना स्थूलिभद्र फागु जेवां आपणी कल्पनाजीभमां स्वाद मूकी जाय एवां पांच-पचीस काव्यो मळे तो ये विपुल जैन साहित्य फंफोस्यानो श्रम सार्थक थई जाय.
(श्रीमहावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रंथमाथी साभार)
१. डिल उपरि दुःख आगमी वाहला तुज्झ मिलेसि. ३५
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84