Book Title: Shrutsagar 2015 05 06 Volume 01 12 13
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
मे-जून-२०१५ धृष्टता अने घेलछाना भावो औत्सुक्यनी साथे केवा गूंथाता आवे छे! आ तो नवयौवना छे. ए जाणे छे -
वेल उपर कुंपळ फरीने आवे छे, फरी-फरीने चंद्र पण ऊगे छे, पण प्रेमलताना कन्द समान यौवन फरीने आवतुं नथी'
यौवनकाळे एने विरह केटलो वसमो लागतो हशे! कवि प्रकृतिनी संयोगावस्थाना विरोधमा एना आ विरहने मूकीने एनी विषम वेदना प्रगट करे छे.
तरुवर अने वेलीने आलिंगन देता जोईने चित्त क्षुभित थई जाय छे भरयौवने प्रियतम वेगळो छे अने एने क्षण पण वीसरी शकातो नथी.'
बीजी वखते जाग्रत अवस्थाना आ वियोगने कवि स्वप्नावस्थाना संयोगने पडछे मके छे. जाग्रत सत्य छे, अने स्वप्न तो छ मिथ्या. आ मिथ्यानी जाळमां फसाती स्त्रीविरहदर्द ऊलटा, घेरु बनी जाय छे. मिथ्या मिलन रचावी आपता स्वप्नोने ए रोषपूर्वक कहे छे.
रे पापी धुतारा स्वप्नो, मारी मश्करी न करो सूतां तमे मने संयोग करावो छो पण जागु छु त्यारे तो वियोगनो वियोग ज! स्वप्ननो विभाव आ कविनी कल्पनानो केवो मौलिक उन्मेष छे!
कोशाए तो स्नेहजीवन माणेलुं छे एना चित्तमां आजे एनां स्मरणो उभराय छे. ए दिवसो केवी रीते जता हता? प्रियतमनी साथे रूसणां अने मनामणां, लाड अने रीस, अने सदानो संयोग ए भर्या-भर्या नेहजीवनने स्थाने आजे नरी शून्यता अंतरने फोली रही छे. स्त्री सहज उपमानथी आ करुण स्थितिविपर्ययने ए नारी वाचा आपे छे. - विवाह वीत्ये जेवो मांडवो तेवी कंथ विना १. वली रे कुपलडीय वेलडी, वली वली ऊगई चंद,
पणि न वले गयु योवन, प्रेमलतार्नु कंद.७ २. तरुअरवेलि आलिंगन देखिय सील सलाय,
भरयौवन प्रिय वेगलु, खिण न विसारिओ जाई. ५ ३. पापी रे घूतारां सुहणडां मुझ स्यु हासु छोडि, कराई विगेह जगावीनइ सूतां मूकई जोडि. १६
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