Book Title: Shrutsagar 2015 05 06 Volume 01 12 13
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 51
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 49 SHRUTSAGAR MAY-JUNE-2015 हुं सूनी थई गई छु फेरवी पलटावीने, भिन्न भिन्न संदर्भो अने विभावोथी विरहावस्थाने कवि केवी चित्रमय-विचिलमय अभिव्यक्ति आपे छे! कोशाने एक वात समजाती नथी. पाणी विना सरोवर सुकाई जाय त्यारे हंसो बिचार शु करे? पण जेना घरे मनगमती गोरी छे एने विदेशमां केम गमतुं हशे?' प्रियतमनी आ उदासीनता एनाथी सहन थती नथी, अने तेथी ते क्रोधनी मारी क्रूर लागे एवं अभिशापवचन उच्चारी बेसे छे के, 'जे नेह करीने एनो त्याग करे एना पर वीजळी पडजो' पण अंते एने आ परिणामने माटे प्रेम अने प्रेम करनार हृदय ज गुनेगार लागे छे. 'हृदय, परदेशी साथे प्रीति तें शु जोईने मांडी?' छता प्रीति कई एना हृदयमांथी खसती नथी. आ अवतार तो एळे गयो एवी हताशा एने घेरी वळे छे, अने सदा संयोगसुख आपे एवा अवतारनुं एनु चित्त कल्पना करी रहे छे. हुं पंखिणी केम न सरजाई के प्रियतमनी पासे पासे भमती तो रहेत, हुं चंदन केम न सरजाई के प्रियतमना शरीरने सुवासित तो करत, हुं फूल केम न सरजाई के एने आलिंगन तो करी रहेत, हुं पान केम न सरजाई के एना मुखमां सुरंगे शोभी तो रहेत.' विरहिणीना हृदयना अटपटा आंतरप्रवाहोने कवि केवी झीणवटथी झीली शक्या छे! ___ अवस्था मात्र विरहनी, छता भावसृष्टि केवी समृद्ध अने वैविध्यसभर छे! आ १. वीवाह वीतओ मांडवे तिम हू सूनी कंत. २० २. सूकई सरोवर जल विना, हंसा किस्यु करेसि, जस घर गमतीय गोरडी, तस किम गमई रे विदेश.८ ३. हुं सिइ न सरजी पंखिणि, जिम भमती प्रीउ पासि, हुँ सिइन सरजी चंदन, करती प्रियतमनु वास.३१ हुँ सिं न सरजी फूलडां, लेती आलिंगन जाण, मुहि सुरंग ज शोभता, हुं सिंइ न सरजी पान. ३२ For Private and Personal Use Only

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