Book Title: Shrutsagar 2015 05 06 Volume 01 12 13
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
42
मे - जून - २०१५
एमनी मौलिकता विवादास्पद बनी जाय छे पण परंपरानो उपयोग करवामांये विवेकनी अने रसदृष्टिनी जरूर पडे छे अने परंपरानो उपयोग करवा छतांये साचा कविनी कल्पनाशक्ति अछती रहेती नथी. आ कविओने पण परंपरानो लाभ मळ्यो होए पूरतु संभवित छे.
मालदेवना अने जिनपद्मसूरिना वर्णनोमां संस्कृत काव्यनी आलंकारिक छटा देखाय छे अने जयवंतसूरिना काव्यमां क्यांक 'वसंतविलास' ना तो क्यांक मीरानी कविताना भणकारा संभळाय छे. छता आ तणे कविओ परंपराने स्वकीय बनावीने प्रगट करे छे, केटलांक मौलिक उन्मेषो पण बतावे छे. रसदृष्टिए एमनी कृतिओने तपासवानो श्रम एळे जाय तेम नथी.
मालदेवनी पासे कथनकला नथी, पण कवित्व छे. वर्षाऋतुनुं ट्रंकु पण सुरेख अने स्वच्छ वर्णन, कोशाना सौन्दर्यवर्णनमां झबकती केटलीक रमणीय ताजगीभरी कल्पनाओ अने कोशानी प्रीतिझखनानी काव्यमय अभिव्यक्ति आनी साक्षी पूरे छे. कोशाना सौन्दर्यवर्णनमां रूढ उपमा उत्प्रेक्षाओ ठीक-ठीक छे, छतां कल्पनानुं अने उक्तिनुं जे वैविध्य कवि लावी शक्या छे ते नोंधपात्र छे, कविनी चित्रशक्ति अने वाग्विदग्धतानी प्रतीति केटलीक पंक्तिओ करावे छे ज.
एना श्याम केश शोभी रह्या छे अने माही अपार फूलो एणे गूथ्या छे, जाणे के श्याम रजनीमा नाना तेजस्वी तारको चमकी न रह्या होय ! '
एनो चोटलो तो जाणे एना यौवनधननी रखेवाळी करती काळी नागण !'
आंखमां एणे काजळ सार्थं अने उज्ज्वळताने अंधारघेरी करी नाखी, जे पारकाना चित्तने दुःख आपे तेनु मोढुं काळु ज करवुं जोईए.'
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१. श्याम केश अति सोहता, गूथे फूल अपारा रे, श्याम रयणमाहि चमकता, योनि सहित तनु तारि रे. ३६
२. श्याम भुयगी थू वेणी, यौवनधन रखवाली रे. ४०
३. नयनिहिं कज्जल सारीउ, याने अधेरु, उजमालो रे, चित्त पराई जो दुःख देवई, तिन्ह मुख कीजि कालो रे. ४८
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