Book Title: Shrutsagar 2015 05 06 Volume 01 12 13
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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SHRUTSAGAR
___MAY-JUNE-2015 पोता हृदय प्रेमथी छलकी रह्यु छे पण स्थूलिभद्र तो पर्वत जेवा अचल छेआवा एकपक्षी प्रेमनी व्यर्थतार्नु दुःख केवु असाधारण होय! कोशाना उद्गारोमां दृष्टांतपरंपरा योजीने कविए एना अनुरागने अने ए अनुरागनी व्यर्थताना दुःखने केवी सचोट अभिव्यक्ति आपी छे!
एकांगी स्नेहथी कंई रंग जामे नहि, दीवाना चित्तमां नेह नहि अने पतंग बळी-बळीने मरे' मूर्ख मधुकरे एकपक्षी नेह कर्यो, केतकीना मनमां स्नेह नहि ने भ्रमर रसलीन थईने मर्यो चातक अने घननीरना जेवी एकांगी प्रीति कोई न करशो सारंग मुखथी पियु-पियु बोल्या करे छे पण मेघ कई एनी पीडा जाणतो नथी.'
कोशानी अवस्थामा घणी भावक्षमता छे. पण कथा करवानी अने संयमधर्मनो महिमा गावानी उतावळमां कविए आथी वधारे लक्ष एना तरफ आप्यु नहि कोशा राज-वारांगना हती. एनामां वारांगनाने सहज एवं वाणीनुं अने व्यवहारनुं चातुर्य होय. आ कवि ज, सिंहगुफामुनि कोशाना सौन्दर्यथी लुब्ध बने छे ए वखते, कोशाना व्यक्तित्वना ए अंशने उठाव आपे छे.
कामासक्त मुनिनी ए केवी मश्करी उडावे छे-'धर्मलाभथी अहीं कंई काम थतु नथी, अहीं तो अर्थलाभ जोईए' पोतानी प्रीतिने छेह देनार स्थूलिभद्र प्रत्ये आ कोशाए कंई व्यंगबाण फेंक्या नहि होय? एने फोसलाववा-पटाववानो प्रयत्न नहि कर्यो होय? परंतु आ कवि तो कोशाना हृदयना एक ज भावने व्यक्त करीने अटकी गया छे.
मानवसहज संवेदनो के कोई आंतरसंघर्ष वंदनीय जैन साधुमां जैन मुनिकविओ न आलेखे ए समजी शकाय एवी वात छे. पण स्थूलिभद्र तो केवु साहस १.एक अगकइ नेहरइ, कछू न होवइ रगो रे,
दीवा के चित्तिमाहे नहीं, जलि जलि मरि पतंगो रे, ५५ २.एक अगकु नेहरु, मुरखि मधुकरि कीनुरे,
केतकी के मनहीं नहीं, भ्रमर मरि रस लीधुरे. ५७ ३. नेह एकग न कीजीइ, जिउं चातक घन-नीरो रे, सा-ग पीउ पीउ मुखि बोलि, मेह न जानई पीरो रे. ६०
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