Book Title: Shrutsagar 2015 05 06 Volume 01 12 13
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 24 श्रीविशालसोमसूरिंदवर, जेहनुं नित करइ ध्यान, सिंघसोम प्रभु देहना, अनुदिन करइ गुणगान ॥१॥ ॥ इति नमस्कारः ॥ वीर जिणेसर भुवण दिणेसर, प्रणमु प्रांणी भाविंजी, श्रीसिद्धारथ-त्रिशलानंदन, सुरनर जस गुण गावइजी, सोविनतनुछवि दीपइ जेहनी, सूरय कोडि हरावइजी, श्रीविशालसोमसूरीसर जेहना चरणकमलि मन ल्याविजी ॥१॥ जिन चुवीसइ वंदु भावइ, श(शि) वसुखना दातारजी, भावठिभंजन दारिद्रगंजन, मुगतिरमणिभरतारजी, श्रीविशालसोमसूरीसर जेहनां, नांम जपइ उदारजी, भगवंत अनंतगुणाकर, सकलजंतुहितकारजी ॥२॥ जिनवरभाषित सूत्र अनोपम, निसुणउभविअणवृंदजी, चउद पूरवनई अंग इग्यारइ, बार उपांग सुखकंदजी, छ छेदनइं दस पयन्ना, सुणतां टलइ भवफंदजी, ए संभलावइ भविक जीवनइ, श्रीविशालसोमसूरिदजी ॥३॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यक्ष मातंग सिद्धायका देवी, सासनना रक्षपालजी, भविक जीवनी भावठि भांजइ, आपइ ऋद्धि रसालजी, श्रीविशालसोमसूरि संघज केरा, विघन हरइ ततकालजी, सिंघसोम पंडित जस नव-नव, वावइ गुणनी मालजी ॥४॥ ॥ श्रीमहावीरस्तुतिः ॥ ॥ माई धन सुपन तुं धन जीवी - ए ढाल ॥ सरसति पय प्रणमुं, मागु वचनविलास, गुण गावा जिनना, मुझ मनि अधिक उह्लास ॥ १ ॥ चवीसमु जिणवर, सुरनर जस गुणगाइ, सिद्धारथनंदन, नामिइ पातिक जाइ ॥ २॥ For Private and Personal Use Only मे - जून - २०१५

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