Book Title: Shrutsagar 2015 05 06 Volume 01 12 13
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org SHRUTSAGAR 27 MAY-JUNE-2015 प्रस्तुत प्रत आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिरमां प्रत क्रमांक ८४४४० उपर संग्रहीत छे. प्रतमां कुल त्रण पेज छे. एमांनुं सौथी पहेलुं पेजनो प्रारंभनो भाग विशीर्ण थयो छे. अने एना कारणे ज पाठ खंडित थयो छे. जेटला अक्षरो तुटेला जणाया छे त्यां मोटा काउंसमां ए अक्षरोने मुक्या छे. तो क्यांक आखो पाठ ज तुटी यहोवाथी खाली जग्या राखी छे. पाणीना कारणे स्याही फेलाय गयेली छे अने एना कारणे कृति वाचनमां भ्रम उत्पन्न थाय छे. प्रतना मध्यभागे अक्षरमय फुल्लिकानुं चित्रण छे तेमज दंड माटे लाल स्याहीनो वपराश कर्यो छे. > Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तुत प्रतना प्रतिलेखक पं. हेमरत्न गणि छे. ज्ञानमंदिरमां संग्रहित वि. सं. १७६३थी१७६८ सुधीमां लखायेली अन्य चार प्रतोनी प्रतिलेखन पुष्पिकामां पं. हेमरत्न गणिने जयरत्नना शिष्य तरीके नोंध्या छे. आथी पं. हेमरल गणि वाचक राजरत्नना गुरुभाई था. प्रस्तुत कृतिनी हस्तप्रतमां पण प्रतनो आलेखन समय के स्थान विगेरेनी कोई नोंध आलेखी नथी. पण प्रतालेखन उपरथी अढारमी सदीनी होवानुं संभवी शके छे. गिरनार (री) मंडन नेमि जिन स्तवन nin ॥ दूहा ॥ श्री जिनवदन निवासीनि श्रुतदेवी धरी ध्यान । नेमिनाथ गुण वर्ण, कविजन मांगी मांन ॥ १ ॥ [व]तकाचल मंडणुं, करूणारस कासार । [स] कलजीव ऊगारवा, परिहर[इ] जेणई निज [नार] ॥२॥ ॥ सुगुण सनेही मेरे लाल ए ढाल ॥ जंबूद्वीप भरतखंड सारा, पूरवदे[श] जिन धरम आचारा । सौरीपुर [] यर []रदारा, [रा]जति समुद्रविजय भूधारा ॥३॥ [शिवादेवी [ रा ]णी तस घरि दारा, सीलादिक गुणना नहीं पारा । अपराजीतथी चवी सुर ठारा, [म]ध्यरयणि प्रभु लि (ली) इ अवतारा ॥४॥ For Private and Personal Use Only

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