Book Title: Shrutsagar 2015 05 06 Volume 01 12 13
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थूलिभद्रविषयक त्रण फागुकाव्यो जयंत कोठारी प्राचीन गुजरातीना विपुल जैन साहित्यनो, ए सांप्रदायिक छ एम कहीने, कांकरो काढी नाखी शकाशे नहि. मध्यकाळमा निरुद्देश निर्भेळ कविता क्या हती? जैनोनो वर्ग सामान्य हिंदु वर्गने मुकाबले नानो अने एनी परंपरामां दीक्षाना महिमानुं तत्त्व जरा प्रबळ (जैन कविओ - जे मोटे भागे मुनिओ ज हता. - तेमणे बहुधा दीक्षानो महिमा गाई शकाय एवं ज वस्तु पसंद कर्यु छे, अथवा वार्तानायकने दीक्षा आप्या विना एमने चेन पड्यु नथी), तेथी एमनुं साहित्य वधारे सांप्रदायिक लागे छे. जैनेतर हिंदु परंपरा वधारे परिचित, तेथी एमां सांप्रदायिकता देखाती नथी पण ए परंपरानुं साहित्य पण धार्मिक प्रयोजनवाळू तो छे ज. जैन कविओ जैनेतर कविओने मुकाबले बहु [क] वित्त नथी देखाडता ए साचु छे छता जैन कविओ जूनी भाषा वापरता होवाने कारणे, के पेला सांप्रदायिकताना पूर्वग्रहने लीधे एमनुं योग्य मूल्यांकन थवामां अंतराय आवतो होय एवं तो नथी ने, ए तपासवा जेवु छे. धार्मिकता अने सांप्रदायिकताने उल्लंघीने पण कवित्व प्रगट थई शके-जेम मध्यकाळना घणा कविओनी बाबतमां बन्यु छे. नरसिंह, मीरा, अखो, प्रेमानंद, दयाराम जेवी प्रतिभावाळो कोई जैन कवि नजरे चडतो नथी (जैनेतर साहित्यमां पण छठ्ठो कोई क्या छे?) पण नाकर, धीरो, भोजो, प्रतीम के स्वामीनारायण संप्रदायना कविओ जेटलु [क] वित्त बतावनार जैन कविओ नहि होय ए मानवा जेवु जणातु नथी छता आपणा साहित्यना अध्ययनमां जैन कविओ अने साहित्य उपेक्षित रह्या छे ए हकीकत छे प्रथम पंक्तिना विद्वानोना विवेचननो जे लाभ अखो, प्रेमानंद, दयाराम जेवाने मळ्यो छे ते कोई जैन कविने मळ्यो जणातो नथी. भालण, नाकर, नरपति, शामळ वगेरेने आपणा अभ्यासमां जे स्थान मळतुं रह्यं छे तेवु कोई जैन कविने भाग्ये ज मळ्यु छे. विपुल प्रमाणमां साहित्यसर्जन करनार लावण्यसमय तथा समयसुन्दर जेवा कविओनो सांगोपांग अभ्यास थवो हजु बाकी छे. साहित्यना इतिहासोमां पण विशिष्ट जैन कृतिओ अने कविओनो पूरतो परिचय कराववामां आवतो नथी. हा, नरसिंह पूर्वेना जैन साहित्यनो कंईक विगते परिचय कराववामां आवे छे, केमके ए वखतनुं जैनेतर साहित्य अल्प प्रमाणमां छे! घणु जैन साहित्य हजी सुधी अप्रकाशित छे For Private and Personal Use Only

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