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श्रुतसागर
मे-जून-२०१५ दयारामे पण सांप्रदायिक साहित्य घणु लख्यु हतुं, परंतु एनी साची कविता लोकोए झीली लीधी अने अभ्यासीओए एने लक्षमा राखी दयाराम- मूल्यांकन कर्यु.
जैन कविता संप्रदाय बहार झीलाय नहि ए समजाय एवं छे, पण अखूट जैन साहित्य भंडारमाथी साची कवितानी वीणणी करी, एनु योग्य मूल्यांकन करवानुं काम आपणे कर्यु नथी. जैन साहित्य- आ रीते संशोधन-संपादन थशे त्यारे, संभव छे के, बीजी हरोळना केटलांक सारा कविओ अने तेमना काव्यो आपणने मळशे.
जैन कविओनो हेतु धर्मप्रचारनो होवा छता एमणे ए प्रचारना साधननी पसंदगी विशाळ क्षेत्रमांथी करी छे एमणे माल जैन पौराणिक कथाओनो ज आश्रय लीधो छे एवं नथी, लोकवार्ताना अखूट खजानाने एमणे उपयोगमां लीधो छे वळी, जैनेतर पौराणिक आख्यान-वस्तुनो उपयोग करवानुं पण ए चूक्या नथी. ज्यारे जैनेतर कविओए जैन कथावस्तुने हाथे य अडाड्यो नथी. जैन संप्रदाय तो नवीन हतो. एणे लोकसमुदायने आकर्षवा माटे लोकसमुदायमा प्रचलित कथावार्तासाहित्यनो उपयोग करवो रह्यो जैनेतर कविओने आवी जरूर न पडे ते समजाय एवु छे.
अर्वाचीन युगमां आपणा कविओए प्राचीन कथावस्तुनो आश्रय लईने एमांना रहस्यबीजने स्वतंत्र दृष्टिथी जोई विकसाव्यु होय एवं घणीवार बन्यु छे, पण अहीं पण एमनु लक्ष मोटे भागे हिंदु कथासाहित्य तरफ ज गयु छे. क्यारेक एमनी दृष्टि बौद्ध कथा-साहित्य तरफ गयेली पण जोवा मळे छे. परंतु विशिष्ट जैन कथाओने सारा कविनो प्रतिभास्पर्श मळ्यो होय एवं जाण्यामां नथी केटलीक जैन कथाओनी क्षमता आ दृष्टिए तपासवा जेवी गणाय.
आवी क्षमतावाळी एक कथा स्थूलिभद्रनी छे नेहना बंधनमां बंधाई ज्यां बार वर्ष गाळ्या हता ए कोशा वेश्याना आवासमां स्थूलिभद्र, मुनिवेशे, चातुर्मास गाळवा आवे छे. स्थूलिभद्रने माटे आ केवो नाजुक अने कटोकटीभर्यो काळ हशे! प्रियतमनुं स्वागत करवा थनगनी ऊठेली कोशाए केवा अणधार्या संवेदनो अनुभव्या हशे! रागविरागना संघर्षे केवा केवा रहस्यमय रूप धारण कर्या हशे! आवी बीजी बे कथाओ१. श्री जयभिख्खुए जैन पौराणिक साहित्यमाथी वस्तु लई नवलकथाओ लखी छे श्री पडियानी एकबे वार्ताओमांजैन कथा-प्रसादोनो उपयोग थाय छे. पण आ बन्ने लेखको जैनधर्मी छे आ सिवाय पण थोडं लखायु हशे कदाच पण विशिष्ट सर्जकतावाळी कोई कृति खरी?
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