Book Title: Shrutsagar 2015 05 06 Volume 01 12 13
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 30 श्रुतसागर मे-जून-२०१५ वीहवा महोच्छव मांडीया, घरि घरि रंग अपार । यादवराय मनि धरउ श्रावण सुदि छठि केरडं, लगन लीधुं मनोहार ।।२४।। यादवराय मनि धरउ । जांन लेई प्रभु चालीआ, आव्या तोरण बारि । यादवराय मनि धरउ गुखि चढी राजलि जोइ, मेली सखी परिवार ॥२५॥ यादवराय मनि धरउ दक्षिण लोचन फरकीयुं, राजलि करइ विचार । यादवराय मनि धरउ सहीअर सवि आसी दीई, तुम्ह होस्यइ जयकार ॥२६॥ यादवराय मनि धरउ इणइ समइ कुरुणारव सुणी, पछइ नेमिकुमार । यादवराय मनि धरउ जीव राख्या गुरव भणी तेह, ए पोकार ।।२७|| यादवराय मनि धरउ ए धीग्-धीग् वीहवाहनइ, प्राणी करई बहु रीव । यादवराय मनि धरउ सेवकनई कुंडल देई, छोडाव्या सवि जीव ।। २८|| यादवराय मनि धरउ रथ फेरी जिनवर वलिया, नवि परणुं एह नारि । यादवराय मनि धरउ राजलि निसुणी गहिबरी, विलवइ वारो-वारि ॥२९॥ यादवराय मनि धरउ ॥विषय न गांजीइ ढाल । रुदन करइ राजीमती, वलीउ जाणी रे कंत, सूर बाणी धरणी टली रे दीठउ पूरव वरतंतो रे ॥३०॥ नाह न मुंकीइ एकली अबला बालोरे। नाह न मुंकीइ साहिब दीन दयालो रे, नाह न मुंकीइ॥ आंचली॥ अष्ट भवांतर प्रीतडी, तुंमइ करी विसराल। नीठरपणुं सबि परिहरउ, सकल जंतु प्रतिपालो रे॥ नाह न मुंकीइ... समजावी साजनि घj, तुहि न मानी रे वात। आणइ भवि ए प्रभु विना, अवर ते बंधव तातो रे। नाह न मुंकीइ... प्रीयुडइ मुझनई परिहरी, न दीउ दक्षिणहाथ(थो)। तु हुंज राजीमती, सिरि मेह लावू हाथो रे॥३३॥ नाह न मुंकीइ... For Private and Personal Use Only

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