Book Title: Shrutsagar 2015 05 06 Volume 01 12 13
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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SHRUTSAGAR
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बावीसमां जिणेसरू ए, सामलवन्नशरीर, श्रीविशालसोमसूरीसरू, नमइ निरंतर धीर ॥१॥ ॥ इति नमस्कारः ॥
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MAY-JUNE-2015
श्रीनेमि जिणंद जुहारीइ, तु भव लख पातक हारीइ, जस नाम सदा मनि धारीइ, श्रीविशालसोम गणधारीइ ॥१॥
॥ इति नमस्कारः ॥
श्रीनेमिजिणंद जुहारीइ, तु भव लख पातक हारीइ, जस नाम सदा मनि धारीइ, श्रीविशालसोम गणधारीइ ॥ १ ॥
केवलज्ञानी प्रमुख सवि जिणवरा, त्रिणि कालई बहुत्तरि अतिवरा, विहरमांन मेली बाणुं खरा, वंदइ विशालसोमसूरीसरा || २ ||
जन प्रवचन भव्य तुझे सुणु, मनि भाव आणि ते अतिघ(णु), विशालसोमसूरि मुख तणु, जिम भवदुखपातक निरजणु ॥३॥
अंबिका देवी आशा पूरती, अज्ञानतिमिर वारती, श्रीविशालसोमसूरि शुभमती, तसु संघनां विघन विडारती ॥४॥ ॥ इति नेमिनाथस्तुतिः ।।
॥ राजलि बइठी मालीइ ए ढाल ॥
म जिणेसर वंदीइ, जे स्वामी हे बालब्रह्मचारि कि,
राज राजीमती परिहरी, जेह सम नहीं है, अवर संसारि कि ||१|| (आंचली)
समुद्रविजयरायकुलतिलु, श(शि) वादेवि हे मात मल्हार कि, ब्रह्मचारीमा शिरोमणी, जस नामिं हे हुइ जय-जयकार कि ॥२॥
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नेमि जिणेसर....
नेमि जिणेसर.....
नवभव-नारि राजीमती, ते छांडी हे जाणी अथिर संसार कि, मुगतिरमणि हेलां वरिउ, जे कहीइ हे यदुवंशशिणगार कि ॥ ३ ॥ नेमि जिणेसर....

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