Book Title: Shrutsagar 2015 05 06 Volume 01 12 13
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra SHRUTSAGAR www.kobatirth.org 21 बावीसमां जिणेसरू ए, सामलवन्नशरीर, श्रीविशालसोमसूरीसरू, नमइ निरंतर धीर ॥१॥ ॥ इति नमस्कारः ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir MAY-JUNE-2015 श्रीनेमि जिणंद जुहारीइ, तु भव लख पातक हारीइ, जस नाम सदा मनि धारीइ, श्रीविशालसोम गणधारीइ ॥१॥ ॥ इति नमस्कारः ॥ श्रीनेमिजिणंद जुहारीइ, तु भव लख पातक हारीइ, जस नाम सदा मनि धारीइ, श्रीविशालसोम गणधारीइ ॥ १ ॥ केवलज्ञानी प्रमुख सवि जिणवरा, त्रिणि कालई बहुत्तरि अतिवरा, विहरमांन मेली बाणुं खरा, वंदइ विशालसोमसूरीसरा || २ || जन प्रवचन भव्य तुझे सुणु, मनि भाव आणि ते अतिघ(णु), विशालसोमसूरि मुख तणु, जिम भवदुखपातक निरजणु ॥३॥ अंबिका देवी आशा पूरती, अज्ञानतिमिर वारती, श्रीविशालसोमसूरि शुभमती, तसु संघनां विघन विडारती ॥४॥ ॥ इति नेमिनाथस्तुतिः ।। ॥ राजलि बइठी मालीइ ए ढाल ॥ म जिणेसर वंदीइ, जे स्वामी हे बालब्रह्मचारि कि, राज राजीमती परिहरी, जेह सम नहीं है, अवर संसारि कि ||१|| (आंचली) समुद्रविजयरायकुलतिलु, श(शि) वादेवि हे मात मल्हार कि, ब्रह्मचारीमा शिरोमणी, जस नामिं हे हुइ जय-जयकार कि ॥२॥ For Private and Personal Use Only नेमि जिणेसर.... नेमि जिणेसर..... नवभव-नारि राजीमती, ते छांडी हे जाणी अथिर संसार कि, मुगतिरमणि हेलां वरिउ, जे कहीइ हे यदुवंशशिणगार कि ॥ ३ ॥ नेमि जिणेसर....

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84