Book Title: Shrutsagar 2015 05 06 Volume 01 12 13
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चतुर्विंशति जिन नमस्कार Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनि श्री सुयशचंद्रविजय 'चैत्यवंदन भाष्य' ए एक देवदर्शननी विधिनुं प्रतिपादन करतो आचार ग्रंथ छे. देवदर्शननी विधि शुं होय? तेनो अनुक्रम केवो होय ? देरासरमां कई-कई आशातनाओ वर्जवी जोईए? विगेरे बाबतोनो सूक्ष्म परिचय आ ग्रंथमांथी प्राप्त थाय छे. त्यां ज प्रभुदर्शननी विधिनुं आलेखन करता कर्ताए लण प्रकारना नमस्कारनुं स्वरूप बताव्यं छे. जेमां १. मस्तक नमाववा वडे करातुं जघन्य वंदन, २. स्तुति वडे करातुं मध्यम वंदन, ३. थोइनी (स्तुति) जोड वडे करातुं उत्कृष्ट वंदन एम त्रण प्रकारना जघन्य, मध्यम अने उत्कृष्ट वंदन कह्या छे. आपणे त्यां उपरोक्त प्रकारोमांथी लणे चोमासी चौदशे चोवीश तीर्थंकरोनी स्तवना रूपे उत्कृष्ट देववंदन करवानी प्रणालिका छे. ते देववंदनमा पहेला, सोळमां, बावीशमां, लेवीशमां अने चोवीशमां तीर्थंकरोनी थोईना जोडथी अने बाकीना तीर्थंकरोनी एक-एक थोई वडे स्तवना कराई छे. अहीं प्रश्न ए थाय के कृतिनुं नाम जो 'चतुर्विंशति जिन देववंदन (माळा)' एवं होय तो दरेक तीर्थंकरोनी चार थोईना जोडथी स्तवना थवी जोईए परंतु अहीं फक्त पांच ज जिनेश्वरी चार थोई थी स्तवना केम? तो एवं विचारी शकाय के दरेक तीर्थंकरोनी जो चार थोईना जोडी स्तवना थाय तो समय घणो थाय जेमां श्रावकोनी स्थिरता न रहे ए कारणथी ज मुख्य पांच जिननी चार थोयथी देववंदना कही होय. प्रस्तुत कृति चोमासी देववंदन जेवी ज अप्रगट रचना छे. देववंदननी विधिना क्रमनुं आलेखन कर्या वगर मूळकृति रूप चैत्यवंदन, स्तुति अने स्तवनोनो अहीं संचय करायो छे. कृतिनुं साद्यंत निरीक्षण करता जे विशेष बाबतो जाणवा मळे छे ते नीचे मुजब छे. १. कृति मध्यकालीन गुर्जरभाषनी होवाथी कृतिमां 'इ' कारनो प्रयोग घणी जग्याए छूटथी थयेलो जोवा मळे छे. २. संस्कृत पद्य रचना शैलीमा देखाता समास प्रयोगोय अहीं पण अधिक For Private and Personal Use Only

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