Book Title: Shrenik Charitra Bhasha Author(s): Gajadhar Nyayashastri Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 8
________________ arrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrma (५) भट्टारक सकलकीर्तिके पट्टपर भट्टारक भुवनकीर्ति हुए। भट्टारक भुवनकीर्ति समस्त लोकको आश्चर्य करनेवाले थे, संसारके स्वरूप प्रकाश करनेमें चतुरमति थे, स्तुत थे, उत्कृष्ट तपस्वी थे, संसारभयरूपी सर्पके लिये गरुड एवं पृथ्वीके समान क्षमाशील थे ॥६॥ आत्मस्वरूपके ज्ञाता चतुर चिरंतन चंद्र आदिसे पूजित चरणकमलोंसे युक्त आचार्य श्री ज्ञानभूषण कीर्ति प्रसार करनेवाली चारित्रशुद्धि हमें प्रदान करें ॥ १९ ॥ ___ अन्य मनुष्यों के चित्तोंको जीतने एवं नम्रीभूत करनेवाले बौद्धोंसे स्तुत पवित्र आत्माके धारक बुद्धिमान अनेक राजाओंसे पूजित एवं प्रभु-भट्टारक विजयकीर्ति जैन मतकी रक्षा करै एवं संसारसे आप लोगोंका वचायें ॥ ७० ॥ भट्टारक विजयकीर्तिके पट्टपर गुणोंका समुद्र, व्रती, बुद्धिमान, अतिशय गुरु, उत्कृष्ट, प्रसिद्ध, वादीरूपी हस्तियों के लिये सिंह एवं महान् श्री शुभचंद्राचार्य हुए । तेजस्वी श्री शुभचंद्रने यह सरल सदा भव्योंको सिद्धि प्रदान करनेवाला पांडवचरित्र रचा ।। ७१ ॥ इसप्रकार उक्त तीन प्रमाणोंसे यह बात निर्विवाद सिद्ध हो चुकी कि भट्टारक शुभचंद्र मूलसंघके भट्टारक हुए हैं और वे विजयकार्तिके शिष्य और भगवत्कुदकुंदके आम्नायमें हुए हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 402