________________
व्याख्या
२. वन-कर्म :
जङ्गल में से हरी लकडी, बांस आदि काटकर बेचना, और उस से अपनी आजीविका चलाना । इस में त्रस जीवों की भी बहुत बड़ी हिंसा होती है। ३. साडी-कर्म:
बैल-गाड़ी अथवा घोड़ा-गाड़ी आदि द्वारा भाड़ा कमाना । अथवा गाड़ी आदि बाहन बनवा कर बेचना । किराये पर चलाना । इस में भी त्रस जीवों की वहुत हिंसा होती है। ४. भाड़ी-कर्म:
जिस प्रकार अंगार कर्म और वन कर्म का परस्पर सम्बन्ध है, उसी प्रकार साड़ी कर्म और भाड़ी कर्म का भो आपस में सम्बन्ध है । साडीकर्म में गाडी आदि वाहन मुख्य हैं और भाडी-कर्म में भाड़ा कमाने का दृष्टि से घोडे-ऊँट एवं बैल आदि पशु मुख्य हैं। ५. फोडी-कर्म :
हल, कुदाली एवं सुरंग आदि से पृथ्वी को फोड़ना और उस में से निकले हुए पत्थर, मिट्टी एवं धातु आदि खनिज पदार्थ को बेचना स्फोट-कर्म है । अथवा भूमि खोदने का ठेका लेकर भूमि खोदना । उससे आजीविका करना । कृषि कर्म, फोडी-कर्म नहीं है। वह श्रावकत्व के लिए सर्वथा वर्जित भी नहीं है। ६. दन्त-वाणिज्य : .. दांत का व्यापार करना । दाँत लेना, खरीदना, और खरीद कर उसकी अन्य वस्तुएँ बनाकर बेचना । इस में दांत वाले पशु का. वध होता है, अतः इसमें त्रसजीवों की बहुत बड़ी हिंसा होती है । लक्ष-वाणिज्य :
लाख का व्यापार करना । लाख वृक्षों का रस है । लाख निकालने में त्रसजीवों की बहुत हिंसा होती है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org