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व्याख्या
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अब्रह्मचर्य (मैथुन) सेवन का त्याग करना, मणि (रत्न)सोना आदि का त्याग करना, माला, रंग, विलेपन आदि का त्याग करना, शस्त्र मुसल' आदि सावध व्यापार का त्याग करना। यावत् अहोरात्र (दिन-रात तक) पौ का धषतवपालन करना। दो करण तीन योग से (अब्रह्यसेवन आदि) न करून कराऊँ, मन से, वचन से, काय से. इस एकादश पौषधोपवास व्रत के श्रमणोपासक को पाँच अतिचार जानने योग्य हैं, (किन्तु) आचरण के योग्य नहीं है। जैसे कि-शय्या-संथारे का मूलतः प्रतिलेखन (निरीक्षण) न किया हो, अथवा विवेक से ठीक तरह न किया हो, शय्या-संथारे की प्रमार्जन (यतना) न की हो, अथवा विवेक से ठोक तरह न की हो, उच्चारण-पासवण (मल-मूत्र) की भूमि (स्थान) का प्रतिलेखन न किया हो, अथवा विवेक से ठीक तरह न किया हो, उच्चार-पासवणभूमि का प्रमार्जन न किया हो, अथवा विवेक से प्रमार्जन न किया हो, पौषधोपवासव्रत का विधिवत् पालन न किया हो। जो मैंने दिवस-सम्बन्धी अतिचार किए हों, तो उसका
पाप मेरे लिए निष्फल हो। व्याख्या : पौषध :
पौषध सांसारिक जीवन-संघ की सीमा को और अधिक संकुचित कर देता है । एक अहोरात्र के लिए सचित्त वस्तुओं का, शस्त्र का, पाप
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