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श्रावक प्रतिक्रमण - सूत्र
लघुत्व, अनन्तवीर्य रूप आठ गुण प्राप्त किये हैं । इकत्तीस
गुणों से युक्त हैं।
सिद्धों में वर्ण नहीं, गन्ध नहीं, रस नहीं, स्पर्श नहीं, संस्थान नहीं, वेद नहीं, काया नहीं, कर्म नहीं, जन्म नहीं, जरा नहीं, मरण नहीं, पुनरागमन नहीं । अस्तु, पन्द्रहभेदी सिद्ध भगवानों को वन्दना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ, तथा जानते अजानते किसी भी प्रकार की अविनय एवं अशानता हुई हो, तो तीन करण और तीन योग से क्षमा चाहता हूँ ।
नमो आयरियाणं :
नमस्कार हो, आचार्यों को । आचार्य कैसे हैं ? पांच आचार पाँच महाव्रत, पाँच इन्द्रिय-जय, चार कषाय-जय, नव वाड सहित शुद्ध-शील, पांच समिति, तीन गुप्ति- इन छत्तीस गुणों से युक्त हैं, और जो श्र त सम्पदा, शरीर - सम्पदा, वचन सम्पदा, मति-सम्पदा, प्रयोग- सम्पदा, वाचना- सम्पदा, संग्रह - सम्पदा, आचार-सम्पदा इन आठ सम्पदाओं से सम्पन्न हैं, तथा अन्य अनेक गुणों से संयुक्त हैं, उन आचार्य महाराज को वन्दना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ, तथा जानते-अजानते किसी भी प्रकार की अविनय एवं आशातना हुई हो, तो तीन करण और तीन योग्य से क्षमा चाहता हूँ ।
नमो उवज्झायाणं :
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नमस्कार हो, उपाध्यायों को । उपाध्याय कैसे हैं ? जो ग्य ह अंग - आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, भगवती, ज्ञाताध मंकथांग, उपासकदशांग, अन्तकृतदशांग, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्न- व्याकरण, विपाक त, और बारह उपांग- औप पातिक, रायपसेणिय, जीवा जीवाभिगम, प्रज्ञापना, जम्बू-दीप
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