Book Title: Shravaka Pratikramana Sutra
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra
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श्रामक प्रतिक्रमण-सूत्र
उपसर्गहर-स्तोत्र
उवसग्गहरं पासं,
पासं वंदामि कम्मघणमुक्कं । विसहर-विसनिन्नासं,
मंगल-कल्लाग- आवासं ॥१॥ विसहर फुल्लिगमंतं,
कंठे धारेइ जो सया मणुओ। तस्स गह रोगमारी
दुट्ठजरा जति उवसामं ॥२॥ चिट्ठउ दूरे मंतो,
तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ । नर-तिरिएसु वि जीवा, .
पावंति न दुक्ख-दोगच्चं ॥३॥ तुह सम्मत्ते लद्धे,
चिन्तामणिकप्पपायवब्भहिए । .. पावंति अविग्घेणं,
जीवा अयरामर ठाणं ॥४॥ इस संथुओ महायस !
भत्तिन्भर-निब्भरेण हियएण । ता देव ! दिज्ज बोहिं,
भवे भवे पास जिणचंद ! ॥५॥
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