Book Title: Shravaka Pratikramana Sutra
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 158
________________ व्याख्या १४६ अर्थ : दिवसचरम का (व्रत) ग्रहण करता । चारों आहारों का त्याग करता हूँ। अनाभोग, सहसाकार, महत्तराकार एवं सर्वसमाधिप्रत्ययाकार-उक्त चार आगारों के सिवा चारों आहारों का त्याग करता हूँ। (९) अभिग्रह-सूत्र : मूल : अभिग्गहं पच्चक्खामि । चउव्विहं पि आहारं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं । अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि । अर्थ : अभिग्रह का व्रत ग्रहण करता हूँ। चारों आहारों का त्याग करता हूँ। अनाभोग, सहसाकार, महत्तराकार, सर्वसमाधिप्रत्ययाकार-उक्त चार आगारों के सिवा चारों आहारों का त्याग करता हूँ। (१०) निर्विकृतिक-सूत्र : मूल : विगइओ पच्चक्खामि । अन्नत्थणाभोगे, सहसागारेणं, लेवालेवेणं, गिहत्य-संसट्ठणं, उक्खिनविवेगेणं, पडुच्चमक्खिएणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवशियागारे वोसिरामि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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