Book Title: Shravaka Pratikramana Sutra
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 163
________________ १५४ श्रावक प्रतिक्रमण-सूत्र 'इच्छामि पडिक्कमिउं" पाठसंख्या २, 'इच्छाकारेण' पाठसंख्या ५, 'आगमे ति विहे' पाठसंख्या ३, फिर २४ से लेकर ४३ तक से सभी पाठों को पढ़े। बाद में 'इच्छामि पडिक्कमिउं" पाठसंख्या २, फिर दो 1'इच्छामि खमासमणो!' पाठसंख्या २२ पढ़े। इसके बाद पांच पदों को वन्दना करे। पंचम आवश्यक पांचवें आवश्यक में पहले 'नमोकार मन्त्र' पाठसंख्या १, 'क रेमि भन्ते !' पाठसंख्या ६, 'इच्छामि पडिक्कमिउं' इच्छामि ठामि काउस्सग्गं), पाठसंख्या २, 'तस्स उत्तरी' पाठसंख्या ६-७ पढ़कर, फिर ४, 'लोगस्स' का 'काउस्सग्ग' करे। फिर 'नमो अरिहंताणं' बोलकर काउस्सग्ग पारे। फिर 'ध्यान हे विषय' पाठसंख्या ५० बोलकर, एक बार. लोगस्स पाठसंख्या ८ उच्चारण से बोले । फिर दो 'इच्छामि खमासमणो !' पाठसंख्या २२ पढ़े। बाद में छठे आवश्यक की आज्ञा ले । षष्ठ आवश्यक : छठे आवश्यक में गुरु से यथाशक्ति प्रत्याख्यान करे । यदि गुरु न हों, तो स्वयं ही प्रत्याख्यान कर ले। फिर पाठसंख्या ५१ कहकर, फिर यह बोले षट् आवश्यकों में से किसी भी आवश्यक में जानते-अजानते जो कोई अतिचार लगा हो, तथा पाठ बोलने में मात्रा, अनुस्वार, अक्षर, पद, अधिक, न्यून, आगे, पीछे, एवं विपरीत कहे हों, तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं । 'गतकाल का प्रतिक्रमण, वर्तमानकाल का संवर, और भविष्यतकाल का प्रत्याख्यान ।' इतना कहकर बैठ जाय और १. यह पाठ कहीं पञ्चम आवश्यक के प्रारम्भ में भी पढ़ा जाता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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