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व्याख्या
आचार्य-वन्दन :
आगमों के भिन्न-भिन्न रहस्यों के ज्ञाता ज्ञानी, उग्रतम चारित्र चारित्र का पथ अपनाया है । पक्षपातता से शून्य यथायोग्य न्यायकारी, पतितों को शुद्ध कर धर्म में लगाया है ।। सूर्य-सा प्रचंड तेज प्रतिरोधी तेज प्रतिरोधी जावें झेंप, संघ में अखंड निज शासन चलाया हैं । 'अमर' सभक्तिभाव बार बार वन्दनार्थ, गच्छाचार्य - चरणों में मस्तक झुकाया है ||
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उपाध्याय -वन्दन :
मंद बुद्धि शिष्यों को भी विद्या का अभ्यास करा दिग्गज सिद्धान्तवादी पंडित बनाया हैं | पाखंडी जनों का गर्व खवे कर जगत् में, अनेकान्तता का जय-केतु जय-केतु फहराया है । शंका-समाधान द्वारा भविको को बोध दे के, देश, परदेश ज्ञान-भानु चमकाया है । 'अमर' सभक्ति-भाव बार-बार वन्दनार्थ, उपाध्याय - चरणों में मस्तक झुकाया है |
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