Book Title: Shravaka Pratikramana Sutra
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

Previous | Next

Page 166
________________ व्याख्या आचार्य-वन्दन : आगमों के भिन्न-भिन्न रहस्यों के ज्ञाता ज्ञानी, उग्रतम चारित्र चारित्र का पथ अपनाया है । पक्षपातता से शून्य यथायोग्य न्यायकारी, पतितों को शुद्ध कर धर्म में लगाया है ।। सूर्य-सा प्रचंड तेज प्रतिरोधी तेज प्रतिरोधी जावें झेंप, संघ में अखंड निज शासन चलाया हैं । 'अमर' सभक्तिभाव बार बार वन्दनार्थ, गच्छाचार्य - चरणों में मस्तक झुकाया है || ११७ उपाध्याय -वन्दन : मंद बुद्धि शिष्यों को भी विद्या का अभ्यास करा दिग्गज सिद्धान्तवादी पंडित बनाया हैं | पाखंडी जनों का गर्व खवे कर जगत् में, अनेकान्तता का जय-केतु जय-केतु फहराया है । शंका-समाधान द्वारा भविको को बोध दे के, देश, परदेश ज्ञान-भानु चमकाया है । 'अमर' सभक्ति-भाव बार-बार वन्दनार्थ, उपाध्याय - चरणों में मस्तक झुकाया है | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178