Book Title: Shravaka Pratikramana Sutra
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 167
________________ १५८ श्रावक प्रतिक्रमण-मूत्र साधु-वन्दन : शत्रु और मित्र तथा मान और अपमान, सुख और दुःख द्वत-चिन्तन हटाया है । मैत्री और करुणा समान सब प्राणियों पे, क्रोधादि-कषाय-दावानल भी बुझाया है ।। ज्ञान और क्रिया के समान दृढ़ उपासक, भीषण समर कम-चमू से मचाया है । 'अमर' सभक्ति-भाव बार-बार वन्दनार्थ, त्यागी-मुनि-चरणों में मस्तक झुकाया है ।। धर्म-गुरु-वन्दन : भीम-भव-वन से निकाला बड़ी कोशिशों से, मोक्ष के विशुद्ध राज-मागे पै चलाया है। संकट में धर्म-श्रद्धा ढीली-ढाली होने पर, समझा-बुझा के दृढ़ साहस बँधाया है ।। कडता का नहीं लेश सुधा-सी सरस वाणी, धर्म-प्रवचन नित्य प्रम से सुनाया है। 'अमर' सभक्ति भाव बार-बार वन्दनार्थ' धर्मगुरु-चरणों में मस्तक झुकाया है ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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