Book Title: Shravaka Pratikramana Sutra
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 153
________________ श्रावक प्रतिक्रमण-सूत्र अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसा-मोहेणं, साहु-वयणेणं, महत्त रागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरामि अर्थ : सूर्योदय से लेकर दिन के पूर्वार्ध तक (दो पहर तक) चारों आहारों का-अशन, पान, खाद्य एवं स्वाद्य का त्याग करता है। अनाभोग, सहसाकार, प्रच्छन्नकाल, दिशामोह, साधु वचन महत्तराकार और सर्व-समाधि प्रत्ययाकार-उक्त बात प्रकार के आगारों के सिवा चारों आहारों धा त्याग करता है। व्याख्या महत्तराकार कार्य है-विशेष निर्जरा आदि को ध्यान में रख कर रोगी आदि की सेवा के लिए, अथवा श्रमणसंघ के किसी अन्य महत्वपूर्ण कार्य के लिए गुरुदेव आदि महत्तर-,रुष की आज्ञा पा कर निश्चित समय के पहले ही प्रत्याख्यान पार लेना । (४) एकाशन-मूत्र : एगासणं पच्चक्खामि । तिविहं पि आहारंअसणं.खाइन साइमं । अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, सागारियागारेणं, आउंटणापसारणेणं, गुरुअब्भुट्ठाणेणं पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरामि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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