Book Title: Shravaka Pratikramana Sutra
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 143
________________ १३४ साधु-वन्दना : आदरी संजम भार, सुमति गुपति धार, जया करे काय, बुझाय कषाय लाय, ज्ञान पढ़े आढ़ों याम, लेवे भगवंत नाम, धरम को करे काम; ममता को मारी है; कहत हैं तिलोकरिख, कर्मा को टाले विख, ऐसे मुनिराज ताकुं, वन्दणा हमारी है ।। गुरुदेव - वन्दना : श्रावक प्रतिक्रमण - सूत्र Jain Education International करणी करे अपार, विकथा निवारी है; सावद्य न बोले वाय, किरिया भण्डारी है । जैसे कपड़ा को थाण, दरजी वेतत् आण खंड-खंड करे जाण, देत सो सुधारी है; काठ के ज्यू सूत्रधार, हेमको कसे सुनार, माटी के जो कुम्भकार, पात्र करें त्यारी है । धरती के करसाण, लोहे के लुहार जाए, सीलवट सीला आण, घाट घड़े भारी है, कहत है तिलोकरिख, सुधारे ज्यू गुरु शिष्य, गुरु उपकारी, नित लीजे बलिहारी है ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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