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साधु-वन्दना :
आदरी संजम भार, सुमति गुपति धार,
जया करे काय,
बुझाय कषाय लाय,
ज्ञान पढ़े आढ़ों याम, लेवे भगवंत नाम, धरम को करे काम; ममता को मारी है; कहत हैं तिलोकरिख, कर्मा को टाले विख, ऐसे मुनिराज ताकुं, वन्दणा हमारी है ।।
गुरुदेव - वन्दना :
श्रावक प्रतिक्रमण - सूत्र
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करणी करे अपार, विकथा निवारी है; सावद्य न बोले वाय, किरिया भण्डारी है ।
जैसे कपड़ा को थाण, दरजी वेतत् आण खंड-खंड करे जाण, देत सो सुधारी है; काठ के ज्यू सूत्रधार, हेमको कसे सुनार, माटी के जो कुम्भकार, पात्र करें त्यारी है । धरती के करसाण, लोहे के लुहार जाए, सीलवट सीला आण, घाट घड़े भारी है, कहत है तिलोकरिख, सुधारे ज्यू गुरु शिष्य, गुरु उपकारी, नित लीजे बलिहारी है ॥
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