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प्रत्याख्यान पच्चक्खाणेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? पच्चक्खाणेणं आसव-दाराई निरु भइ, पच्चक्खाणेणं इच्छा-निरोहं जणयइ, इच्छा-निरोहंगए णं जीवे सव्व-दव्बेसु विणीय-तण्हे, सीई
भूए विहरइ, अर्थ : 'भगवन् ! प्रत्याख्यान करने से आत्मा को किस फल की प्राप्ति होती है ?
प्रत्याख्यान करने से हिंसा आदि आश्रव-द्वार बन्द हो जाते हैं, और इच्छा का निरोध हो जाता है, इच्छा का निरोध होने से समस्त विषयों के प्रति वितृष्ण हो कर, साधक शान्त-चित्त रह कर, विचरण करता है।
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