Book Title: Shravaka Pratikramana Sutra
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 141
________________ श्रावक प्रतिक्रमण - सूत्र ऐसे साधु महाराज को वन्दना करता हूँ, नमस्कार करता हैं, तथा जानते - अजानते किसी भी प्रकार की अविनय एवं आशातना हुई हो, तो तीन करण और तीन योग से क्षमा चाहता है । : ४५ : अरिहंत-वन्दना १३२ नमो श्री अरिहंत, करमों को किया अंत, हुवा सो केवलवंत, करुणा भण्डारी है; अतिशय चौंतीसधार, पेंतीस वाणी उच्चार समझावे नरनार, पर उपकारी हैं । शरीर सुन्दराकार, सूरज-सो झलकार, गुण हैं अनंन्त सार, दोष परिहारी है: कहत है तिलोक रिख, मन वच काय करि झुकी झुकी बारंबार वन्दना हमारी है ।। - सिद्ध-वन्दना : सकल करम टोल, वश कर लियो काल, मुकति में रह्या माल, आतमा को तारी है? देखत सकल भाव, हुआ है जगत्-राव, सदा ही क्षायिक भाव-भय अविकारी हैं । अचल अटल रूप आवे नहीं भव- कूप, अनूप स्वरूप ऊप, ऐसी सिद्ध धारी हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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