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व्याख्या
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अशन, पान खाद्य एवं स्वाद्य-सम्बन्धी समस्त चार आहारों का त्याग करता हूँ । जीवनपर्यन्त - मैंने अपने इस शरीर का पालन एवं पोषण किया है - जो मुझे इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनोरम, अवलम्बनरूप, विश्वासयोग्य, सम्मत, अनुमत, बहुमत, आभूषण की पेटी के समान प्रिय रहा है, और जिसकी मैंने सर्दी से, गर्मी से, भूख से, प्यास से, सर्प से, चोर से, डांस से, मच्छर से, वात, पित्त, कफ एवं संनिपात आदि अनेक प्रकार के रोग तथा आतंक से, परीषह तथा उपसर्ग आदि से रक्षा की है । ऐसे इस शरीर का भी मैं अन्तिम साँस उसाँस तक त्याग करता हूँ । इस प्रकार शरीर के ममत्वभाव को त्याग कर, संलेखनारूप तप में अपने आप को समर्पित करके एवं जीवन और मरण की आकांक्षा रहित हो कर विहरण करूँगा । मेरी श्रद्धा एवं प्ररूपणा यह है, कि मैं अनशन के अवसर पर अनशन करू, स्पर्शना से शुद्ध बनूँ ।
अतिचार :
इस प्रकार मारणान्तिक संलेखना के पांच अतिचार हैं, जो श्रमणोपासक को जानने के योग्य तो हैं, (किन्तु ) आचरण के योग्य नहीं हैं। वे इस प्रकार हैंइस लोक के सुखों की इच्छा की हो, परलोक के सुखों की इच्छा की हो, अधिक जीने की इच्छा की हो, शीघ्र मरने की इच्छा की हो, काम-भोगों की इच्छा की हो, तो उसका पाप मेरे लिए निष्फल हो ।
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