Book Title: Shravaka Pratikramana Sutra
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 130
________________ व्याख्या १२१ कालातिक्रम : भोजन का यथाप्राप्त समय टाल कर भोजन बनाना और खाना जिससे कि भोजन के संभावित अवसर पर कोई अतिथि आ जाय, तो न देना पड़े। परोपदेश : वस्तु देनी न पड़ जाए, इसलिए यह कहना कि यह वस्तु तो मेरी नहीं है; यह भी व्रत का दोष है। मात्सर्य : स्वयं को तो सहजभाव से देने की भावना नहीं है; परन्तु दूसरों को दान देते देखकर ईर्ष्याभाव से दान करना, कि ये करते हैं, तो मैं भी करूं। मैं दान करने में दूसरों से कम नहीं हूँ। अहंकार से दान निर्मल नहीं रहता। :४०: संलेखना-सूत्र विधि-सूत्र : अपच्छिम-मारणंतिय-संलेहणा-समये पोसहसालं पडिलेहित्ता, पोसह-सालं पमज्जित्ता, दब्भाइ-संथारयं संथरित्ता, दुरुहित्ता, उत्तरपुरत्याभिमुहे संपलियंकाइ-आसणे निसीइत्ता करयल-परिग्गहियं, दस-नहं सिरसावत्रं, मत्थए अंजलिं कटु एवं वइस्सामि । नमोऽत्थु णं अरिहंताणं- भगवंताणं जाव संपत्ताणं । मल अपश्मिा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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