Book Title: Shravaka Pratikramana Sutra
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra
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श्रांवतिक्रण मप्र
अबंभ-पच्चक्खाणं, मणि-सुवरणाइ-पच्चक्खाणं,सतला-वएणग-विलेवणाइ-पच्चक्खा, मुसलाइ-सावज्ज-जोग-पच्चक्खाणं । जाव अहोरत्त, पज्जुवासोमि । दुविहं तिविहेणं, न करेमि न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा | एयस्स एक्कारसमस्स पोसहोववासव्वयस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा । तं जहा-अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहियसिच्जासंथारए, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय सिज्जासंथारए, अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय उच्चारपासवणभूमि, अप्पमज्जिय - दुप्पमज्जिय उच्चार-पासावणभूमि, पोसहोववासस्स सम्म अणणुपालणया । जो मे देवसिओ अइयारो कओ, तस्स
मिच्छा मिया पोषधोपना (खाने
अर्थ :
ग्यारहवां पौषध या पोषधोपवास-व्रत है-अशन (भोजन) पान (पानी), खादिम (खाने योग्य), स्वादिम ( स्वाद योग्य ) वस्तुओं का प्रत्याख्यान (त्याग) करना।
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