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श्रावक प्रतिक्रमण-सूत्र
चाहिए। कुछ लोग पानी लेने पर दसवाँ पौषध मानते हैं और इसके लिए देशावकाशिक-व्रत का पाठ पढ़ते हैं । परन्तु यह धारणा गलत है, दशवां व्रत पौषध-व्रत नहीं हैं।
और आज-कल जो दया का रूप प्रचलित है, यह भी पौषध ही है । इसीलिए इसे दया-पौषा भी कहा जाता है । उक्त क्रिया में 'असणपाण-खाइम-साइम-पच्चक्खाणं' यह पाठांश न कहना चाहिए । शेष अंश ज्यों का त्यों है।
मूल :
द्वादश अतिथि-संविभाग-व्रत बारसमं अतिहि-संविभागव्वयं समणे निग्गंथे फासुएणं, एसणिज्जेणं, असण-पाण-खाइमसाइमेणं, वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पाय-पंछोणं, पाडिहारिएणं पीढ़-फलग-सिज्जा-संथारएणं ओसह-भेसज्जेणं य पडिलामेमाणे विहरामि । एयस्स बारसमस्स अतिहि-संविभागव्वयस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियब्वा, न समायरियव्या। तं जहा-सचिन-निक्खेवणया, सचित्तपिहणया, कालाइक्कमे, पर ववएसे, मच्छ रिया। जोमे देवसिओ अइयारो कओ, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।
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