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श्रावक प्रतिक्रमण-सूत्र
अतिचार:
देशावकाशिक व्रत के पाँच अतिचार हैं, जो श्रमणोपासक को जानने योग्य तो हैं. (किन्तु) आचरण के योग्य नहीं है । वे इस प्रकार हैंआनयन-प्रयोग :
मर्यादित भूमि से बाहर रहे हुए सचित्तादि पदार्थ किसी को भेज कर अन्दर में मंगवाना, अथवा समाचार मैंगवाना । प्रेष्य-प्रयोग :
मर्यादा से बाहर की भूमि में अन्दर में से किसी दूसरे के द्वारा कोई पदार्थ अथवा सन्देश भेजना। शब्दानुपात:
मर्यादा के बाहर की भूमि से सम्बन्धित कार्य के आ पड़ने पर, मर्यादा की भूमि में ही रह कर शब्द के द्वारा, अर्थात् खंखार कर, चुटकी
आदि बजा कर, दूसरे को अपना भाव प्रकट कर देना, जिससे वह व्यक्ति विना कहे ही संकेतानुसार कार्य कर सके । यह उक्त व्रत का दूषण है । रूपानुपात :
मर्यादा में रखी हुई भूमि के बाहर का यदि कोई कार्य आ पड़ें, तो शरीर की चेष्टा करके, ऑन्ख का इशारा करके या शरीर के अन्य किसी अङ्ग के संकेत से दूसरे व्यक्ति को अपना भाव प्रकट करके, विना कहे ही उससे काम करा लेना । बाह्य पुद्गल-प्रक्षप :
मर्यादित भूमि के बाहर का कार्य आ जाने पर कंकर मार कर; ढ़ेला फेक कर, अथवा अन्य कोई वस्तु फेंक कर दूसरे को अपना संकेत करना, आदि।
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