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इस दशम देशावकाशिक-व्रत के श्रमणोपासक को पाँच अतिचार जानने योग्य हैं, (किन्तु) आचरण करने के योग्य नहीं है। जैसे कि - मर्यादित क्षेत्र से वाहर की वस्तु मंगाना, मर्यादित क्षेत्र से बाहर वस्तु भेजना, शब्द के द्वारा मनोगत भाव का ज्ञान कराना, रुप' दिखा कर मनोगत भाव प्रकट करना, कंकर आदि पुद्गल (वस्तू) फेंक कर मनोगत भाव प्रकट करना। जो मैंने दिवस-सम्बन्धी अतिचार किए हों, तो
उसका पाप मेरे लिए निष्फल हो। व्याख्या देशावकाणिक :
परिग्रहपरिमाण-व्रत, दिशापरिमाण-व्रत और उपभोगपरिभोगपरिमाणव्रत की जीवन भर की प्रतिज्ञा को और अधिक व्यापक एवं विराट् बनाने के लिए देशावकाशिक-व्रत ग्रहण किया जाता है। दिशापरिमाण-वत में गमन-आगमन का क्षेत्र जीवन पर्यन्त के लिए सीमित एवं मर्यादित किया जाता है । प्रस्तुत व्रत में उस सीमित क्षेत्र को एक दो दिन आदि के लिए और अधिक सीमित कर लिया जाता है। देशावकाशिक-व्रत की साधना में क्षेत्र-सीमा का संकोच होता है, साथ में उपभोग्य सामग्री की सीमा भी सकुचित हो जाती है। देशावकाशिकव्रत की प्रतिज्ञा हर रोज की जाती है। देशावकाशिक-व्रत :
दशम देशावकाशिक-व्रत है-प्रतिदिन क्षेत्र आदि की मर्यादा को कम करते रहता । जैन-धर्म त्याग-लक्षी है । जीवन को अधिक से अधिक त्याग की ओर झुकाना ही साधना का मुख्य ध्येय है। प्रस्तुत व्रत में इस ओर विशेष ध्यान दिया गया है ।
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