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श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र
से मल संचित हो जाता है, उसको साफ करने के लिए दन्त धावन किया जाता है । दातुन किया जाता है। दातुन के विषय में मर्यादा करना। ३. फल-विधि-परिमाण :
मस्तिष्क और बालों को स्वच्छ तथा शीतल करने के लिए प्राचीन युग में आंवले आदि फलों का प्रयोग किया जाता था । आंवला एवं त्रिफला आदि की मर्यादा करना। . ४. अभ्यगन-विधि-परिमाण : __त्वचा (चमड़ी) आदि के विकारों को दूर करने के लिए तथा शरीर को बलवान रखने के लिए तैल से शरीर की मालिश करना, अभ्यंगन कहा जाता है । मालिश करने में प्रयुक्त होने वाले तैल की मर्यादा करना । ५. उवटन-विधि-परिमाण :
शरीर पर लगी तैल की चिकनाहट को दूर करने के लिए, मैल को दूर करने के लिए तथा शरीर में स्फूर्ति लाने के लिए, प्राचीन काल में उबटन लगाया जाता था, आज के युग में साबुन का प्रयोग किया जाता है । इस प्रकार के उवटन की मर्यादा करना । ६. मज्जन-विधि-परिमाण : __ अभ्यंगन तथा उबटन करने के बाद में स्नान किया जाता था। स्नान के पानी की और स्नान की मर्यादा करना । ७. वस्त्र-विधि-परिमाण :
प्राचीन युग में मनुष्य बहुत कम वस्त्रों का उपयोग किया करता था। एक अधोवस्त्र और दूसरा डत्तरीय, बस, पुरुष के दो ही वस्त्र होते थे । और स्त्री के कंचुकी-सहित तीन । आज तो वस्त्रों की कोई सीमा नहीं रही है । वस्त्र स्वच्छ तो हों, परन्तु विकार पैदा करने वाले न हों। वस्त्रों की मर्यादा करना।
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