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fragrant मूलक मणिबंधणपरूवणा
( ३
हुल्लाणि वइसाह - जेट्ठमासणिबद्धाणि; तत्थेव तेसिमुवलंभादो । एवमण्णसि पि कालणिबंधणं जाणिऊण वत्तव्वं । पंचरत्तियाओ णिबंधो त्ति वा । जं दव्वं भावस्स आलंबणमाहारो होदि तं भावणिबंधणं । जहा लोहस्स हिरण्ण-सुवण्णादीणि णिबंधणं ताणि अस्सिऊण तदुत्पत्तिदंसणादो, उप्पण्णस्स वि लोहस्स तदावलंबणदंसणादो | कोहुत्पत्तिनिमित्तदव्वं कोहणिबंधणं उप्पण्णको हावलंबणदव्वं वा । एत्थ एदेसु frबंधणे hr frबंधणेण पयदं ? णाम ट्ठवणणिबंधणाणि मोत्तूण सेससव्वणिबंधणेसु पयदं । एदं णिबंधणाणुओगद्दारं जदि वि छष्णं दव्वाणं णिबंधणं परूवेदि तो वितमेत्थ मोत्तूण कम्मणिबंधणं चैव घेत्तव्वं, अज्झष्पविज्जाए अहियारादो । किमट्ठ णिबंधणाणुओगद्दार मागयं ? दव्व-खेत्त-काल- भावेहि कम्माणि परूविदाणि, मिच्छ - तासंजम कसाय - जोगपच्चया वि तेसिं परूविदा, तेसि कम्माणं पाओग्गपोग्गलाणं पि पिपरूवणा कदा | संपहि तेसि कम्माणं लद्धप्पसरूवाणं वावारपदुप्पायणट्ठ निबंधणाणुयोगद्दार मागयं । तत्थ जं तं णोआगमदोकम्मदव्वणिबंधणं तं दुविहं- मूलकम्मगिबंधणं उत्तरकम्मणिबंधणं चेदि । तत्थ अट्ठ मूलकम्माणि, तेसि णिबंधणं वत्तस्सामो तं जहा
सम्बद्ध हैं, विचकिल नामक वृक्षविशेष के फूल वैशाख व ज्येष्ठ माससे सम्बद्ध हैं; क्योंकि, वे इन्हीं मासों में पाये जाते हैं । इसी प्रकार दूसरोंके भी कालनिबन्धनका जानकर कथन करना चाहिये । अथवा पंचरात्रिक निबन्धन कालनिबन्धन है ( ? ) । जो द्रव्य भावका आलम्बन अर्थात् आधार होता है वह भावनिबन्धन है । जैसे- लोभके चांदी-सोना आदिक निबन्धन हैं, क्योंकि, उनका आश्रय करके लोभकी उत्पत्ति देखी जाती हैं, तथा उत्पन्न हुआ लोभ भी उनका आलम्बन देखा जाता है । क्रोधकी उत्पत्तिका निमित्तभूत द्रव्य अथवा उत्पन्न हुआ क्रोध जिसका आलम्बन होता है वह क्रोधनिबन्धन कहा जाता है ।
शंका -- यहां इन निबन्धनोंमेंसे कौनसा निबन्धन प्रकृत है ?
समाधान -- नामनिबन्धन और स्थापनानिबन्धनको छोडकर शेष सब निबन्धन यहां प्रकृत हैं । यह निबन्धनानुयोगद्वार यद्यपि छह द्रव्योंके निबंधनकी प्ररूपणा करता है तो भी यहां उसे छोड़कर कर्मनिबन्धनको ही ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि, यहां आध्यात्मविद्याका अधिकार है ।
शंका -- निबन्धनानुयोगद्वार किसलिये आया है ?
समाधान -- द्रव्य, क्षेत्र, काल और योग रूप प्रत्ययोंकी भी प्ररूपणा की जा चुकी है; उनके मिथ्यात्व असंयम, कषाय और योग रूप प्रत्ययोंकी भी प्ररूपणा की जा चुकी
तथा उन कर्मोंके योग्य पुद्गलोंकी भी प्ररूपणा की जा चुकी है। अब आत्मलाभको प्राप्त हुए उन कर्मोंके व्यापारका कथन करनेके लिये निबन्धनानुयोगद्वार आया है ।
उनमें जो नोआगमद्रव्यनिबन्धन है वह दो प्रकारका है-- मूलकर्मनिबन्धन और उत्तरकर्मनिबन्धन । उनमें मूल कर्म आठ हैं, उनके निबन्धनका कथन करते हैं । यथा-
तातो' तदुववत्तिदंसणादो' इति पाठः ।
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