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छक्खंडागमे संतकम्म
णामणिबंधणं ठवणणिबंधणं दव्वणिबंधणं खेत्तणिबंधणं कालणिबंधणं भावणिबंधणं चेदि छव्विहं णिबंधणं होदि। जस्स णामस्स वाचगभावेण पवुत्तीए जो अत्यो आलंबणं होदि सो णामणिबंधणं णाम, तेण विणा णामपवुत्तीए अभावादो। तं च णामणिबंधणमत्थाहिहाण-पच्चयभेएण तिविहं । तत्थ अत्थो अट्टविहो एग-बहुजीवाजीवजणिदपादेवक-संजोगभंगभेएण। एदेसु अटुसु अत्थेसुप्पण्णणाणं पच्चयणिबंधणं । जो णामसद्दो पवुत्तो संतो अप्पाणं चेव जाणावेदि तमभिहाणणिबंधणं णाम। अधवा, एदं सव्वं पि दव्वादिणिबंधणेसु पविसदि त्ति मोत्तूण णिबंधणसद्दो चेव णामणिबंधणं ति घेत्तव्वं, एवं संते पुणरुत्त. दोसाभावादो। ठवणणिबंधणं दुविहं सब्भावासब्भावढवणणिबंधणभेएण। जं जहा अणुयरइ अप्पिददव्वं तं जहा ठविदं सब्भावट्ठवणणिबंधणं। तन्विरीयमसब्भावट्ठवणणिबंधणं। जं दव्वं जाणि दवाणि अस्सिदूण परिणमदि जस्स वा दव्वस्स सहावो दव्वंतरपडिबद्धो तं दव्वणिबंधणं । खेत्तणिबंधणं णाम गाम-णयरादीणि पडिणियदखेते तेसि पडिबद्धत्तुवलंभादो। जो जम्हि काले पडिबद्धो अत्थो तक्कालणिबंधणं । तं जहा- चूअ.. फुल्लाणि चेत्तमासणिबद्धाणि, अंबिलियाहुल्लाणि आसाढमासणिबद्धाणि, वियइल्ल
क्षेत्रनिबन्धन, कालनिबन्धन और भावनिबन्धन इस प्रकार निबन्धन छह प्रकारका है। जिस नामकी वाचक रूपसे प्रवृत्तिमें जो अर्थ आलम्बन होता है वह नाम निबन्धन है, क्योंकि, उसके विना नामकी प्रवृत्ति सम्भव नहीं है। वह नामनिबन्धन अर्थ, अभिधान और प्रत्ययके भेदसे तीन प्रकारका है, उनमें एक व बहत जीव तथा अजीवसे उत्पन्न प्रत्येक व संयोगी भंगोंके भेदसे अर्थ आठ प्रकारका है, इन आठ अर्थों में उत्पन्न हुआ ज्ञान प्रत्ययनिबन्धन कहलाता है। जो संज्ञा शब्द प्रवृत्त होकर अपने आपको जतलाता है वह अभिधाननिबन्धन कहा जाता है । अथवा, यह भी चूंकि द्रव्यनिबन्धन आदिक निबन्धनोंमें प्रविष्ट है, अत एव उसे छोडकर ' निबन्धन' शब्दको ही नामनिबन्धन रूपसे ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि, ऐसा होनेपर पुनरुक्त दोष नहीं आता।
स्थापनानिबन्धन सद्भावस्थापनानिबन्धन और असद्भावस्थापनानिबन्धनके भेदसे दो प्रकारका है। जो जिस प्रकारसे विवक्षित द्रव्यका अनुसरण करता है उसीको उसी प्रकारसे स्थापित करना सद्भावस्थापनानिबन्धन है। उससे विपरीत असद्भावस्थापनानिबन्धन है । जो द्रव्य जिन द्रव्योंका आश्रय करके परिणमन करता है, अथवा जिस द्रव्यका स्वभाव द्रव्यान्तरसे प्रतिबद्ध है वह द्रव्य निबन्प्रन कहलाता है। ग्राम व नगर आदि क्षेत्रनिबन्धन हैं, क्योंकि, प्रतिनियत क्षेत्रम उनका सम्बन्ध पाया जाता है। जो अर्थ जिस काल में प्रतिबद्ध है वह कालनिबन्धन कहा जाता है। यथा-- आम्र वृक्षके फूल चैत्र माससे सम्बद्ध हैं, अम्लिकाके फूल आषाढ माससे
काप्रतो 'अत्थेसुप्पण्णण्णाणं ' इति पाठः। * मपतिपाठोऽयम् । कापतो 'सद्दो ण वुत्तो ताप्रती 'सद्दो (ण) वृत्तो इति पाठ मप्रतिपाठोऽयम्। का-ताप्रत्यो: 'तं जहा' इति पाठ। प्रत्योरुभयोरेव
'सहस्स' इति पाठः। ताप्रती 'गामणयरादीहि ' इति पाठः। .प्रत्योरुभयोरेव 'भअ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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