Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 14
________________ विषय - परिचय १३ साता व असातावेदनीयके बन्धके विना उक्त ज्ञानावरणादि प्रकृतियोंका बन्ध सम्भव नहीं है । इनमें जो सातबन्धक हैं वे तीन प्रकार हैं-चतुः स्थानबन्धक, त्रिस्थानबन्धक और द्विस्थानबन्धक । असातबन्धक भी तीन प्रकार ही हैं — द्विस्थानबन्धक, त्रिस्थानबन्धक और चतुःस्थानबन्धक । इनमें साताके चतुःस्थानबन्धक सर्वविशुद्ध ( अतिशय मंदकषायी), उनसे उसीके त्रिस्थानबन्धक संक्लिष्टतर होते हैं । असाताके द्विस्थानबन्धक सर्वविशुद्ध, इनसे त्रिस्थानबन्धक संक्लिष्टतर, और इनसे भी उसके चतुःस्थानबन्धक संक्लिष्टतर, होते हैं । साताके चतुःस्थानबन्धक जीव उक्त ज्ञानावरणादि प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिको, त्रिस्थानबन्धक अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिको, तथा द्विस्थानबन्धक उत्कृष्ट स्थितिको बाँधते हैं । असाताके द्विस्थानबन्धक उपर्युक्त प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिको, त्रिस्थानबन्धक अजघन्य - अनुत्कृष्ट स्थितिको, तथा चतुःस्थानबन्धक उक्त प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थिति के साथ ही असाताकी भी उत्कृष्ट स्थितिको बाँधते हैं। तत्पश्चात् साता व असाताके चतुः स्थानबन्धक व द्विस्थानबन्धक आदि जीवोंमें ज्ञानावरणकी जघन्य आदि स्थितियोंको बाँधनेवाले जीव कितने हैं, तथा ज्ञानोपयोग व दर्शनोपयोगसे बंधनेवाली स्थितियाँ कौन कौनसी हैं, इत्यादि बतलाकर छह यवोंके अधस्तन व उपरिम भागोंके अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा की गयी है । ( २ ) प्रकृतिसमुदाहार में प्रमाणानुगम और अल्पबहुत्व ये दो अनुयोगद्वार हैं इनमें प्रमाणानुगमके द्वारा ज्ञानावरणादि कर्मोंकी स्थिति बन्धके कारणभूत स्थितिबन्धाध्यवसायस्थानोंके प्रमाणकी प्ररूपणा तथा अल्पबहुत्वके द्वारा उक्त आठों कर्मोंके स्थितिबन्धाध्यवसायस्थानोंके अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा की गयी है । (३) स्थिति समुदाहार में प्रगणना, अनुकृष्टि और तीव्र-मंदता ये तीन अनुयोगद्वार हैं । इनमें प्रगणना द्वारा ज्ञानावरणादि आठ कर्मोंकी जघन्य स्थितिसे लेकर उत्कृष्ट स्थिति पर्यन्त पाये जानेवाले स्थितिबन्धाध्यवसायस्थानोंकी संख्या और उनके अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा की गयी है । अनुकृष्टिमें उपर्युक्त जघन्य आदि स्थितियोंमें इन्हीं स्थितिबन्धाध्यवसायस्थानोंकी समानता व असमानताका विचार किया गया है। तीव्र-मंदता अनुयोगद्वार में जघन्घ स्थिति - आदिके आधारसे स्थितिबन्धाध्यवसायस्थानोंके अनुभागकी तीव्रता व मंदताका विवेचन किया गया है । इस प्रकार द्वितीय चूलिकाके समाप्त हो जानेपर प्रस्तुत वेदनाकालविधान अनुयोगद्वार समाप्त होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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