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ज०वि०
लक्ष्मी के काज हो राजा । केई माँ मरसी केई । जो गफलत में रह्या हो राजा। श्री ॥ १६ ॥ सन्देह नहीं अम्बा वयण में । चेता गई हित काम हो राजा । कालिज मुझ धूजी रह्यो । कुशल रखो अहो राम हो राजा । | श्री॥ २० ॥ सावध रहजो नाथजी । करो योग्य शीघ्र उपाय हो राज । तृतिय ढाल अमोलक भणी । राणी का चिन्तित थाय हो भाई । श्री ॥ २१ ॥ दोहा ॥ राणी सुरी का बयण सुण । नपति अति विस्नाय । कूल भषण मुझ नानड्या। किण विध मार्या जाय । ॥ १॥ विष वृक्ष हाथे लगाविया । ते पिण नहीं कटाय। कल्प वृक्ष सम तनुज दो। विन गुन्हे किम सराय ॥२॥ जन्म से आज दिवस लगे कर्यो न कोई अन्याय । श्राण न उल्लंघी माहेरी । ते किम होवे दुःख दाय। ३॥ कदा राणी सोक खार से । बोले मिथ्या वेण । पण देवी क्यों मिथ्या लवें । अाश्चर्य अधिक एकेण ॥ ४ ॥ यों चिन्ता सागर विषे । राय गौता रह्या खाय । खाड कूप के मध्य रह्या । सुचे ना कोई उपाय ॥ ५ ॥ ढाल ४ थी ॥ वैदरवी सै