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जवि०
सज्जन पुरजन सारा । ढाल चतुर्दश कही अमोलक । अब देखो चमत्कारा ॥ ५६ || बडा ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ राजकन्या भी सज हुइ । अाइ मंडप मांय । वावन
कर स्पर्शे नहीं । सब रहे आश्चर्य पाय ॥ १॥ पाणी ग्रहण करो नृप कहे । तब. वावन कहे राय । में नहीं जोगो सुन्दरी । क्यों जबरीये परणाय ॥२॥ महीपत
कहे जोगा लखी । मेने दी तुम ताय । अटल वयण मुझ ना फिरे। जो कभी मेरु 2 कम्पाय ॥३॥ पूछे नृप निज अंगना । कहो देनी के नाय । सा कहे अाप हुकम । विषे । म्हारी खुशी सवाय ॥ ४ ॥ कुमरी को पूछे कहे । यह मुझ मोड समान ।। इनके विन सब जगनरा । आप समा लिया जान ॥ ५॥ ॥ ढाल १५ मी.॥
आज महारा संभव जिनका ॥ यह० ॥ अहो सुज्ञजन अाज अानन्द धन । नगर | में हर्ष वधाइ राज । सत्य से सर्व सुख जन पावे । दिन २ बधे पुण्याइ राज ॥ || अहो ॥ १॥ यों देखी अति जय हर्षाया । परीक्षा पूरी थाइ । महा सत्यवन्तो
| क्षितीपति जाण्यो । तैसीही राणी बाइ राज॥ अहो ॥२॥ निज स्वरूप तव प्रगट