Book Title: Samyktotsav Jaysenam Vijaysen
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Rupchandji Chagniramji Sancheti

View full book text
Previous | Next

Page 185
________________ ज०वि० १७६ जी । एक लक्ष वर्ष आयु पार ॥ अनसनी हो द्रढासनी | किया अघातिक कर्म छार जी ॥ पधारे मोक्ष मझार जी । हुवे अजरामर अधिकार जी ॥ अनन्त अक्षय सुख लीन सार जी । कृत कृतार्थता यही धार जी ॥ श्री ॥ ८ ॥ जय पुण्य वृद्धि हुवा जी । होंता सर्वार्थसिद्ध मांय ॥ एकावतारी उत्कृष्ट सुखी । महा विदेह से मोक्ष सिधाय जो || और सबी स्वर्गे जाय जी । अतुल्य महा सुख भुक्ताय जी ॥ थोडा ही भवन्तर मांय जी । पामसी शिव सुख सदाय जी ॥ श्री ॥ ६ ॥ आत्म मेदनी विशुद्ध करी । तामे विनय बीज वौवाय || शील कोट से घेर कर | विविध ज्ञान बगीचा बनाय जी ॥ महाव्रत वाडी फूलाय जी । समता रूप होइ सुखदाय जी ॥ क्षमा रूप नीर भराय जी । वैराग्य रंग दे घोलाय जी. ॥ श्री ॥ १० ॥ सद्बोध पिचकारी भर करी । सुमति गुप्ति सहेली संग || सझाय वाजित्र झकार से | हुवे अनहद नाद में चंगजी । खेले उत्सव विजय सुरंगजी पाये सो सुख अभंगजी । बनो येही आत्म प्रसंगजी ॥ श्री ॥ ११ ॥ उयों विजय जी

Loading...

Page Navigation
1 ... 183 184 185 186 187 188 189 190