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ज०वि० १७७
सपरिवार से । यह उत्सव रमी पाये सुख । त्यों सब श्रोता वक्ता मिली । धारो द्रढ श्रद्धा सम्यक सन्मुखजी । महा उपसर्ग न होवो कलुखजी । तो तैसे गया सो सब दुःखजी । यह कथन सार धारो मुखजी । तो कथन श्रवन सार पुखजी ॥ श्री ॥ १२ ॥ श्री सासनपति महावीर के जी। आचार्य हुवे गुणधार पूज्यलवजी ऋषि सोमजी ऋषि । पूज्य कहानजी ऋषि सिरदारजी । तारा ऋषिजी काला ऋषिजी सारजी । वन्तु ऋषिजी धनजी ऋषि लार्जी । महन्त खूवा ऋषिजी अणगारजी । चेन ऋषि जी गुरु प्राणाधार जी ॥ श्री ॥ १३ ॥ तस्य किंकर अमोल ने यो। वंदिता सूत्रानुसार ॥ कथा पढी कथी रास में । यथामति सुधार बधार जी ॥ प्रक्षेप विक्षेप मतानुसारजी । करतां विरुध सत्य हो उचारजी । तो सर्वज्ञ श्रात्म साक्षीदारजी । मिथ्या दुष्कृत्य मुझे वारम्वारजी || श्री० ॥ १४ ॥ कोविद कवीयों कोए । कहूं कीजो यस सुधार ॥ नहीं कवी में कवी शीशु । तेही बुद्धि विबुद्ध उर वारजी ॥ कीजो सर्व दोपण को निवारजी । प्रसार जो गुण विस्तार