________________
ज०वि० रासा की देशी ॥ परमानन्दि वैरागीया जी । निज २ कुटुम्ब समजाय । दीक्षा | १७४
लेवण सज हुवा । तब सज्जन मौछव मण्डाय जी।शुद्धोदक न्हावण कराय जी॥
दिव्य भूषण वस्त्र सजाय जी ॥ जो सहश्र पुरुष उठाय जी । ऐसी सेविका नवों IN को बैठाय जी ॥ श्री समंकित उत्सव सुखदा सदा ॥ टेर ॥ १॥ आया परिवारे Id परिवार्या जी। विजय केवली पास ॥ सडू यथा विधि वंदन कियो । फिर इशाण M
कोण रही खास जी ॥ वस्त्र भूषण तज करी रास जी। पंचमुष्टि लोचन कर्या स 10] जी ॥ साधु वेस धार्या उमंग्या सजी । वन्दी जिनजी से करे अरदास जी ॥ श्री
॥२॥ अलिता पलिता संसार में जी। जरा मरंण प्रज्वलंत ॥ तामे जले जग जंतुना। हम आपके शरण श्रावन्त जी ॥ दया कर हमे तुम बचावन्त जी। अर्को संजम शिष्य करो ससन्त जी ॥ जिनजी कुटुम्ब अाज्ञा लेवन्त जी । नवों | | जनों को दिक्षा देवन्त जी ॥ श्री ॥ ३ ॥ जय १ ऋषि अानन्द २ मुनिजी । सुN न्दर ३ साधु महंत ॥ एह तीनो सन्त सोभिता । अब छे सती नम भणन्त जी ॥