Book Title: Samyktotsav Jaysenam Vijaysen
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Rupchandji Chagniramji Sancheti

View full book text
Previous | Next

Page 182
________________ ज०वि० चेतो भव्य प्राणी । अक्षय सुख इच्छनार जी ॥ चेतो ॥ २१ ॥ जिनाज्ञा आराधो १७३ | निजात्म साधो । होवो शान्त निर्विकार जी ॥ चेतो ॥ २२ ॥ तरो तारो सब M दुःख निवारो। पावो मोक्ष पद सार जी ॥ चेतो ॥ २३॥ इत्यादि सद्बोध दर्शा। यो । ढाल बीसमी मझार जी ॥ चेतो ॥ २४ ॥ ऋषि अमोलक धर्म पसाये । सदा रहे जय जय कार जी ॥ चेतो ॥ २५ ॥ * ॥ दोहा ॥ सुधासमी सुणी देशना ।। तृप्ति सभा शान्त रस ॥ वैराग्य उर्मि ऊमंगी। काढने वक्त सु-कस ॥ १॥ सम्य| क्त्व बत नियम गुण । धारे बहुत सुज्ञ जन ॥ जयसेण आदि सौ परिवार के । । परम संवेग व्याप्यो मन ॥ २॥ सहू परिषद योगे विशुद्ध । जिनजी को करे नम स्कार ॥ आइ थी उसी दिशी गइ । यथा शक्त धर्म धार ॥३॥ जयसेण जिनवन्द कर । लुलीयों को उचार ॥ श्रध्या परतीता उपदेश यह । स्फरसवा द्रढ निर्धार ॥ ४॥ जिनजी कहे यथा सुख करो । प्रतिबन्ध करीये नाय ॥ सुणी | N] अति हर्षी पुनः वन्दी । निज २ सदने प्राय ॥ ५ ॥ॐ ॥ ढाल २१ वी ॥ गौतम

Loading...

Page Navigation
1 ... 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190