Book Title: Samyktotsav Jaysenam Vijaysen
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Rupchandji Chagniramji Sancheti

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Page 180
________________ ज०वि० नर गम धाय ॥ २॥ आये पोषध शाल में । विजय ऋषि वर देख । जाने यही हुवे केवली । पाये हर्ष विशेष ॥ ३॥ दिन कर भी तब प्रगटा । मिले सज्जन स| ब अाय । पुरजन आदि परिषदा । बहुत ही तहां भराय ॥ ४ ॥ जग तारन जिन रायजी । धर्म देशना फरमाय । सो सुणियो श्रोता सवी । लेजो अात्मे रमाय ॥ ५५॥ गाल २० मी ॥ मे मुख देख्यो गोडी पारस को ॥ यह ॥ चेतो चतुर । शुद्ध सम्यक्त्व धारो। धर्म से खेवा पारजी ॥ टेर ॥ चार अंग अति दुर्लभ जगमें प्रथम नर अवतारजी ॥ चे॥ १॥ नव घाटी में अनन्त परावर्तन । किया जन्म | मरण धारजी ॥ चेतो ॥२॥ अनन्त पुण्ये नर हुवा । पिन सत्र सुणवो हुक्कर NI कारजी ॥ चेतो ॥३॥ मिथ्या वाणी खोटी कहानी । सुण अनंतवारजी ॥ चेतो ॥४॥श्रीजिनवाणी सुणके श्रद्धे।सोही सम्यक्त्व उचारजी॥चेतो॥५॥ कुश्रद्धा और और मिथ्या शल्य सोभमा अनन्त संसार जी ॥ चेतो ॥ ६॥ चौथा बोल श्रद्ध के स्पर्शना । यथा शक्तियानुसार जी ॥ चेतो ॥७॥ ज्ञान सहित चारित्र पाले

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